चक्रवातCycloneक्या हैUPSC2024

चक्रवात(Cyclone) और भारत के तटीय राज्यों का नाता हर साल और गहरा होता जा रहा है।2023 में भारत में लगभग 6 से 7 चक्रवात आया है।मई में मोचा, जुन में बिपरजॉय, अक्टूबर में तेज और हामून आया था (कम घातक) नवम्बर में मिधिली, और अभी दिसम्बर में मिचौंग ने तबाही मचाई जिससे काफी जान – माल का नुक़सान हुआ।

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चक्रवात(Cyclone) क्या है ?

सामान्य रूप में चक्रवात(Cyclone) निम्न दाब के केंद्र होते हैं, जिनको चारों तरफ सकेंद्रीय वायुदाब रेखाएं विस्तृत होती है तथा केंद्र से बाहर की ओर वायु दाब बढ़ता जाता है, परिणामस्वरुप परिधि से केंद्र की ओर हवाएं चलने लगती है। जिनकी दिशा उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सुई के विपरीततथा दक्षिणी गोलार्ध में घड़ी की सुई के अनुकूल होती है। चक्रवातों(Cyclone) का प्रायः गोलाकार, अंडाकार या V अक्षर के समान होता है। जलवायु तथामौसम में चक्रवात का पर्याप्त महत्व होता है, क्योंकि इनके द्वारा किसी भी स्थान जहां पर यह पहुंचते हैं, वहां की वर्षा तथा तापमान प्रभावित होतीहै। चक्रवातों को वायुमंडलीय विक्षोभ भी कहा जाता है।

अवस्थित के आधार पर चक्रवातों को दो प्रमुख प्रकारों में  विभक्त करते हैं:

  1. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात(Temperate cyclone)
  2. उष्णकटिबंधीय चक्रवात(Tropical Cyclone)

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात(Cyclone):

  • मध्य अक्षांशों में निर्मित वायु विक्षोभ के केद्र निम्न दाब तथा बाहर की ओ उच्च दाब होता है। इस चक्रवात(Cyclone) में समदाब रेखाएं V आकर की होती है। इनका निर्माण दो विपरीत स्वभाव वाली ठंडी तथा उष्णार्द्र वायुराशियों के मिलने के कारण होता है, तथा इनका क्षेत्र 35 डिग्री से 65 डिग्री अक्षांशों के बीच दोनों गोलार्द्ध में पाया जाता है, जहां परछुआ पवनों के प्रभाव में यह पश्चिम से पूर्व दिशा मेंगति करते हैं। भारत में इस चक्रवात(Cyclone) का प्रभाव शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभ के रूप में दृष्टिगोचर होता है। यह चक्रवात भारत के उत्तरपश्चिम क्षेत्र में रबी की फसल के लिए लाभदायी है। यह चक्रवात(Cyclone) भारत के लिए लाभकारी है इसी लिए इसका आपदा के रूप मेंअध्ययन नहीं करते हैं।

उष्णकटिबंधीय चक्रवात(Cyclone):

  • उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न चक्रवात को उष्णकटिबंधीय चक्रवात(Cyclone) कहते हैं। यह निम्न वायुदाब वाले अभिसरणीय परिसंचरण तंत्र होते हैं, जिनका औसत व्यास 640 किलोमीटर तक होता है। वायु संचरण की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के प्रतिकूल तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अनुकूल दिशा में होती है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात अत्यधिक शक्तिशाली, विनाशकारी, खतरनाक तथा घातक वायुमंडलीय तूफान होते हैं। भारत के पूर्वी तटीय प्रदेशों में उष्णकटिबंधीय चक्रवात(Cyclone) से प्रतिवर्ष आपदा भारी आपदा आती है। भारत के पूर्वी तटीय प्रदेशों में इसे चक्रवात के नाम से जाना जाता है। अतः हम इस अध्ययन में चक्रवात का विस्तृत अध्ययन करेंगे। जो निम्नलिखित है:

    चक्रवात का निर्माण
    चक्रवात का निर्माण

उष्णकटिबंधीय चक्रवात(Cyclone) का निर्माण

अनुकूल परिस्थितियों: उष्णकटिबंधीय चक्रवात(Cyclone) वायुमंडलीय और महासागरीय घटनाएं होती है। इसकी उत्पत्ति से संबंधित कुछ चिन्हित अनुकूल परिस्थितियाँ निम्नलिखित है:

  • उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति महासागर के ऊपर होती है। इसकी उत्पत्ति विषुवत रेखा के दोनों ओर 5 डिग्री से 30 डिग्री अक्षांशों तक दोनों गोलार्द्धो में होती है।
  • समुद्री सतह गर्म (26 डिग्री से 27 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान) होनी चाहिए एवं तापन का विस्तार सतह के नीचे 60 मीटर की गहराई तक होना चाहिए। साथ ही इस सतह के ऊपर स्थित विशाल वायु में प्रचुर मात्रा में जलवाष्प (वाष्पीकरण द्वारा) होनी चाहिए।
  • वायुमंडल में लगभग 5000 मीटर की ऊंचाई तक उच्च सापेक्षिक आर्द्रता विद्दमान हो।
  • ऊपर उठती आर्द्र वायु के संघनन के कारण अति विशाल ऊर्ध्वाधर कपासी मेघ के निर्माण को प्रोत्साहित करने वाली वायुमंडलीय अस्थिरता विद्दमान हो,
  • वायुमंडल के निम्न और उच्च स्तरों के बीच ऊर्ध्वाधर पवन अपरूपण (कर्तन) कम या क्षीण होना चाहिए जो मेघों से उत्पन्न एवं निर्मुक्त ताप को क्षेत्र से निकलने नहीं देता है।(ऊर्ध्वाधर पवन, वायुमंडल के निम्न और उच्च स्तरों के बीच पवन के परिवर्तन की दर होती है।)
  • चक्रवात भंवर(Cyclonic vorticity) वायु के घूर्णन की दर की उपस्थिति  होनी चाहिए जो वायु की चक्रवर्तीय गति को प्रारम्भ करता है और इसे बनाए रखने में सहयोग करता है।

चक्रवातों (Cyclone) को विश्व के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है:

  • अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा(International Date Line) के पश्चिम में उत्तरी पश्चिमी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में टाइफून(Typhoon)
  • उत्तरी अलांटिक महासागर, अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा के पूर्व में उत्तरी- पूर्वी प्रशांत महासागर और दक्षिणी प्रशांत महासागर के क्षेत्रों में हरिकेन
  • दक्षिण पश्चिम प्रशांत महासागर और दक्षिण पूर्वी हिंद महासागर के क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय चक्रवात(Cyclone)
  • उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में भीषण चक्रवाती तूफान।
  • दक्षिण- पश्चिम हिंद महासागरीय क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय चक्रवात(Tropical Cyclone)
  • ऑस्ट्रेलिया में विली विली
  • दक्षिण अफ्रीका में टोरनेडो

    चक्रवात के नाम
    चक्रवात के नाम

कुछ मुख्य देश जहां चक्रवात (Cyclone) हमेशा आते है:

  • भारत, मेरिका, फिलीपींस, जापान, कैरिबियाई द्विप, अफ्रिका का श्चिमी , बंगलादेश, इण्डोनेशिया, श्रीलंका आदि।
  • चक्रवात(Cyclone) में, निम्न दाब केंद्र के चारों ओर – उत्तरी गोलार्ध में वामावर्त दिशा में एवं दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिणावर्त दिशा में- प्रबल पवनें प्रवाहित होती है, हालांकि केंद्र (जिसे चक्रवात की आंख कहते हैं) में पवन बहुत कम होती है और आमतौर पर यह क्षेत्र मेघ और वर्षा रहित होता है।
  • केंद्र से लगभग 20 से 30 KM की दूरी पर पवनें तेजी से अपना अधिकतम वेग प्राप्त कर लेती है।और इसके आगे कार्मिक रूप से इनका वेग कम होता जाता है और लगभग 300 से 500 KM की दूरी पर सामान्य हो जाता है। चक्रवातों का व्यास 100 से 1000 KM तक का होता है, लेकिन इनका प्रभाव महासागरों एवं साथ तट के किनारे कई हजार किलोमीटर के क्षेत्र में अधिक होता है।
  • इसकी ऊर्जा का स्रोत चक्रवात की केंद्र (आंख) के 100 KM त्रिज्या में स्थित होता है, जहाँ केंद्र के व्यास से परे एक संकीर्ण क्षेत्र में अत्यधिक प्रबल पवनें उत्पन्न हो सकती है, जिनकी गति कभी-कभी 250 KM प्रति घंटे से अधिक होती है।

भारत में चक्रवात (Cyclone) के जोखिम:

  • भारत की तट रेखा 7,516 KM लंबी है, जिसमें से 5,422 KM मुख्य भूमि के किनारे हैं तथा 2,094 KM द्विपीय क्षेत्र के अंतर्गत है जिसमें से 132 KM लक्षद्वीप में तथा 1,962 KM अंडमान तथा निकोबार दीप समूह में है। यद्दपि उतरी हिंद महासागर बेसिन (भारतीय तट समेत) में विश्व के केवल 7% चक्रवात आते हैं, लेकिन तुलनात्मक रूप से इनका प्रभाव गंभीर तथा विनाशकारी होता है। ऐसा विशेषतः तब होता है जब यह उत्तरी बंगाल की खाड़ी की सीमा पर स्थित तटों से टकराते हैं।औसतन, प्रति वर्ष 5 से 6 उष्णकटिबंधीय चक्रवात निर्मित होता है, जिनमें से दो या तीन विनाशकारी हो सकते हैं। बंगाल की खाड़ी में अरब सागर की तुलना में कहीं अधिक तूफान आते हैं तथा यह अनुपात लगभग 4:1 का है।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात मई- जून तथा अक्टूबर- नवंबर के महीने में आते हैं। उत्तरी हिंद महासागर में अत्यधिक तीव्रता एवं आवृत्ति वाले चक्रवात बाई मोडल(bi-modal) प्रकृति के होते हैं। उनकी प्राथमिक उच्च आवृत्ति नवंबर में तथा द्वितीय उच्च आवृत्ति मई में होती है। साथ में प्रवाहित विनाशकारी पवनों, तूफानी लहरों तथा भारी वर्षा के कारण उतरी हिन्द महासागर (बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर) में लैंडफॉल के समय आपदा की संभावना विशेष रूप से अधिक होती है।

भारत के चक्रवात (Cyclone) संभावित क्षेत्र:

  • देश में 13 तटीय राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेश है जिनमें से स्थित 84 तटीय जिले उष्णकटिबंधीय चक्रवात से प्रभावित होते हैं। पूर्वी तट पर चार राज्य (तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल) तथा एक केंद्र शासित प्रदेश (पुडुचेरी) तथा पश्चिमी तट पर एक राज्य (गुजरात) चक्रवात आपदा के प्रति अत्यधिक सुभेद्द हैं।

चक्रवात (Cyclone) संबंधी संकट के परिणाम:

  • तटीय प्रदेश के आसपास निचले क्षेत्रों का जलमग्न होना।
  • भारी बाढ़, भूस्खलन।
  • तटों तथा तटबंधों का अपरदन।
  • वनस्पति एवं अवसंरचना का विनाश तथा मानव जीवन की क्षति।
  • भूमि तथा पाइप द्वारा जल आपूर्ति का संदूषण।
  • संचार लिंक में गंभीर व्यवधान।

    Cyclone effect
    Cyclone effect

भारत में चक्रवात (cyclone) चेतावनी प्रणाली:

  • चक्रवातीय निम्न दाब एवं इसके विकास का पता इसके क्षति करने के कुछ घंटे से लेकर कुछ दिन पूर्व तक लगाया जा सकता है। उपग्रह इन चक्रवातों के संचालन का पता लगा लेते हैं, जिसके आधार पर प्रभावित होने की संभावना वाले क्षेत्रों से लोगों को बाहर निकाल लिया जाता है।इसके लैंडफॉल की सटीकता की भविष्यवाणी कठिन होती है। लैंडफॉल संबंधी सटीक भविष्यवाणी के पश्चात, जनसंख्या को स्वयं के बचाव के लिए केवल कुछ घंटों का समय मिल पाता है।
  • भारत की चक्रवात चेतावनी प्रणाली विश्व की सबसे अच्छी चक्रवात चेतावनी प्रणालियों में से एक है। भारत मौसम विज्ञान विभाग(IMD) वायु की गति एवं दिशा का पता लगाने, उस पर नजर रखने तथा चक्रवात की भविष्यवाणी करने के लिए नोडल विभाग है। चक्रवात के संबंध में जानकारी INSAT उपग्रह की सहायता से जुटाए जाती है। चक्रवात के विषय में चेतावनी कई साधनों यथा उपग्रह आधारित आपदा चेतावरी प्रणालीयों, रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, सार्वजनिक उद्घोषणाओं तथा प्रेस बुलेटिन आदि के माध्यम से प्रसारित की जाती है। इन चेतावनियों को आम जनता, मछुआरों के समुदायों (विशेषतः से जो समुद्र में मछली पकड़ने गए हों) पत्तन प्राधिकारीयों, व्यावसायिक उड़ान सेवाओं तथा सरकारी तंत्र तक प्रसारित किया जाता है।

चक्रवात संकट का शमन (Mitigation):

एक प्रभावी चक्रवात आपदा रोकथाम एवं मन योजना के लिए निम्नलिखित की आवश्यकता होती है:

  •  प्रभावी चक्रवात पूर्वानुमान तथा चेतावनी सेवाएं।
  •  सरकारी एजेंसी, विशेषकर त्तनों, मत्स्य- पालन, जहाजरानी जैसे समुद्र संबद्ध क्षेत्रों तथा आम लोगों तक चेतावनियों का तीव्र प्रसार।
  • सूभेद्द क्षेत्रों में चक्रवात आश्रय- स्थलों का निर्माण, लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजने के लिए एक कुशल तंत्र तथा किसी भी परिस्थितिसे निपटने के लिए सभी स्तरों पर सामुदायिक तैयारीयां।

चक्रवात आश्रय स्थल (Cyclone Shelters)

  • चक्रवात के दौरान मानव जीवन की हानि को रोकने के सर्वाधिक सफल तरीकों में से एक चक्रवात आश्रय- स्थल का निर्माण करना है।सघन जनसंख्या वाले तटीय क्षेत्रों में जहां बड़े स्तर पर लोगों को प्रभावित क्षेत्र से बाहर निकालना संभव नहीं होता, सार्वजनिक भवनोंका उपयोग चक्रवात आश्रय- स्थलों के रूप में किया जा सकता है। इन इमारतों को इस प्रकार अभिकल्पित (डिजाइन) किया जासकता है, कि उसमें अग्रभाग रिक्त हो तथा वायु की दिशा में से कम छिद्र हों। भवनों के अपेक्षाकृत छोटे हिस्से को तूफान केसम्मुख रहना चाहिए, ताकि वायु का प्रतिरोध कम से कम रहे। तूफान का प्रभाव कम करने रहे हेतु अर्थ बर्म(earth berm) संरचनाओंऔर भावनाओं के अग्रभाग में ग्रीन बेल्ट का प्रयोग किया जा सकता है।

उपयुक्त बिंदुओं पर विचार करते हुए संभावित जोखिम संबंधी उपाय निम्नलिखित हो सकते हैं:

  • तटीय क्षेत्रों में वृक्षारोपण: यह ग्रीन बेल्ट क्षति को कम करता है क्योंकि वन आकस्मिक बाढ़ों तथा शक्तिशाली पवनों के विरुद्ध बफर जोन के रूप में कार्य करते हैं। वनों के अभाव में चक्रवात निर्बाध रूप से भीतरी भागों को प्रभावित कर सकते हैं।
  • संकट का मानचित्रण(Hazard mapping): वायु की गति तथा दिशा संबंधी मौसमी आंकड़े, एक विशिष्ट गति पर चक्रवात के घटित होने का पैटर्न उपलब्ध कराते हैं। संकट का मानचित्रण किसी भी दिए गए वर्ष में चक्रवात के प्रति सुभेद्द क्षेत्रों का विवरण प्रदान करता है, तथा चक्रवात की प्रचंडता तथा उक्त क्षेत्र में विविध प्रकार की क्षति की गंभीरता अनुमान लगता है।
  • भूमि उपयोग नियंत्रण: इसे इस प्रकार अभिकल्पित किया जा सकता है की महत्वपूर्ण गतिविधियॉं सुभेद्द क्षेत्रों में कम से कम संचालित हों। बाढ़ के मैदानों में आबाद बस्तियों की अवस्थिति सर्वाधिक जोखिम होती है। भूमि उपयोग अभीकल्पना (डिजाइन) में मुख्य विशेषताओं के स्थान को अनिवार्य रूप से चिन्हित किया जाना चाहिए। भूमि उपयोग को विनियमित करने के लिए नीतियाँ उपलब्ध होनी चाहिए तथा भवन निर्माण संहिता का प्रवर्तन किया जाना चाहिए।
  • योजनाबद्ध संरचनाएं: पवन के दबाव को झेलने के लिए योजनाबद्ध संरचनाएं निर्मित की जाली चाहिए। उपयुक्त स्थान का चयन भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। तटीय क्षेत्रों में अधिकांश इमारतें बिना किसी योजनाबद्ध डिजाइन के स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्रियों से ही बनाई जाती है। निर्माण संबंधी बेहतर पद्धतियों को अपनाया जाना चाहिए जैसे:
    • चक्रवातीय तूफान तटीय क्षेत्रों को जलमग्न कर देते हैं। इसलिए, भवन आदि संरचनाओं को खंभों या टीलों के ऊपर बनाने की सलाह दी जाती है।
    • पवन का प्रतिरोध कर पाने तथा बाढ़ से होने वाली क्षति से बचने के लिए घरों को मजबूत बनाया जाना चाहिए। वस्तुओं को ऊपर उठाने वाले बल का प्रतिरोध कर पाने तथा वस्तुओं के उड़ जाने से बचाने के लिए संरचना को जकड़ कर रखने वाले हिस्सों को अच्छी तरह बांधा जाना चाहिए। उदाहरण के लिए छतों को अधिक न लटकाया जाए तथा बाहर निकले भागों को अच्छी तरह से बांधा जाए।
    • वृक्षों की एक पंक्ति सुरक्षा कवच(shield) का काम कर सकती है। यह चक्रवात की ऊर्जा को कम करती है।
    • भवनों को पवन तथा जल के संदर्भ में प्रतिरोधी होना चाहिए।
    • खाद्य आपूर्तियों का भंडारण करने वाली इमारतों का वायु तथा जल से बचाव किया जाना चाहिए।
    • नदी तटबंधों की रक्षा की जानी चाहिए।
    • संचार लाइनें भूमिगत रूप से बिछाई जानी चाहिए।
    • सुभेद्य स्थलों पर सामुदायिक आश्रय के लिए मजबूत कक्षों का निर्माण किया जाना चाहिए।
  • बाढ़ प्रबंधन: भारी वर्षा, तेज पवनों तथा तूफान के कारण चक्रवात प्रभावित क्षेत्र बाढ़ का शिकार हो जाते हैं। भूस्खलन की संभावनाएं भी रहती है। इसलिए बाढ़ शमनकारी उपायों को सम्मिलित किया जा सकता है।
  • वानस्पतिक आच्छादन में सुधार करना: पौधों तथा वृक्षों की जड़ें मिट्टी को बांधे रखती है तथा अपरदन को रोकते हैं, और जल के बहाव को धीमा करती है इससे बाढ़ की संभावना समाप्त या कम हो जाती है। पंक्तियों में लगाए गए वृक्ष तीव्र पवनों के विरुद्ध सुरक्षा कवच का कार्य करते हैं।
  • तटों पर वातरोधी वृक्षारोपण कर पवनों के तेज गति को कम किया जा सकता है। इससे विनाशकारी प्रभाव में कभी आ जाती है।

राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन योजना(National Cyclone Risk Mitigation Project:NCRMP)

  • भारत सरकार ने तटीय समुदायों (जो सामान्यतः निर्धन तथा समाज के कमजोर वर्गों से है) कि सुभेद्यता का समाधान करने के लिए जनवरी 2011 में आंध्र प्रदेश तथा उड़ीसा के लिए NCRMP चरण-1 का आरंभ किया।NCRMP चरण-2 को एक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में गोवा, गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र तथा पश्चिम बंगाल राज्यों में लागू करने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा जुलाई, 2015 में स्वीकृति प्रदान की गई थी।
  •  इस परियोजना का लक्ष्य चक्रवात के प्रति सुभेद्यता को कम करना तथा लोगों एवं अवसंरचना को आपदा प्रत्यास्थ बनाना था। इस परियोजना के चार मुख्य घटक है:
  1. अंतिम बिंदु तक कनेक्टिविटी।
  2. संरचनात्मक तथा गैर- संरचनात्मक उपाय।
  3. चक्रवात संकट जोखिम शमन हेतु तकनीकी सहायता, क्षमता निर्माण तथा ज्ञान सृजन
  4. परियोजना प्रबंधन तथा कार्यान्वयन सहायता।
  • इस परियोजना का विस्तृत या व्यापक लाभ चक्रवात संबंधी पुर्वानुमान, चक्रवात संबंधी जोखिम का शमन तथा बहुत सारे संकट जोखिम प्रबंधन में क्षमता निर्माण है। परियोजना के अंतर्गत निर्माता की जाने वाली मुख्य अवसंरचनाओं में बहुउद्देशीय चक्रवात आश्रय- स्थल , सहित बस्तियां तक सड़कें, पुल तथा समुद्री तटबंध आदि का निर्माण सम्मिलित है।

वर्तमान चुनौतियां:

  • राष्ट्रीय तथा स्थलीय स्तरों पर नियोजन तथा समन्वय की कमी के कारण जारी की गयी चेतावनियों के संबंध में पर्याप्त कार्रवाई न कर पाने के साथ-साथ लोगों द्वारा इनके जोखिम को ना समझ पाना।
  • संचार संबंधी टर्मिनल और उपकरणों तथा संचार सहायक उपकरण सहायता का अभाव।
  • आपदाओं के प्रति प्रभावी प्रत्यास्थता के निर्माण हेतु आपदा प्रबंधन में आधारभूत स्तर की भागीदारी का अभाव।
  • NDMA तथा गृह मंत्रालय में ऐसे पूर्णता स्वचालित तथा आधुनिकतम संचालन केंद्र का अभाव जिसमें रोजमर्रा की गतिविधियों तथा साथ ही आपदाओं के समय के लिए सभी टर्मिनल और सुविधाएं तथा संचार कनेक्टिविटी उपलब्ध हो।
  • देश में आपदा प्रबंधन के लिए विविध प्रकार के नेटवर्कों की स्थापना हेतु विभिन्न एजेंसियों द्वारा स्थापित नेटवर्कों के एकीकरण की आवश्यकता।
  • चक्रवात के पश्चात संचार तथा ट्रांसमिशन टॉवरों जैसी सुनियोजित रूप से अभिकल्पित संरचनाओं  की विफलता।

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