शहरी बाढ़(Urban Flood) क्या है ? भारत में शहरी बस्तियों के अधीन क्षेत्रफल 2001 में 77370.50 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 2011 में 102220.16 वर्गकिलोमीटर हो गया है। यह शहरी उपयोग के अधीन लाए गए 24850 वर्ग किलोमीटर अतिरिक्त भूमि क्षेत्र को प्रदर्शित करता है। नदियों औरजलमार्गों के किनारे और अनियोजित विकास और फैलते आवासों के अतिक्रमण ने जलधाराओं के प्राकृतिक प्रवाह में हस्तक्षेप किया है। इसकेपरिणामस्वरुप शहरीकरण के अनुपात में रन – ऑफ में वृद्धि हुई है, जिससे शहरी बाढ़ (Urban Flood) की स्थितियां उत्पन्न हुई है।
शहरी बाढ़(Urban Flood) के परिणामस्वरुप होने वाली क्षतियॉं:
प्रत्यक्ष क्षतियॉं: बाढ़ के जल के प्रत्यक्ष संपर्क में आने से इमारत अवसर रचनाओं तथा मानव एवं पशु जीवन को होने वाली क्षतिया।
अप्रत्यक्ष क्षतियॉं: ऐसी क्षतिया जो बाढ़ की घटना का परिणाम हो किंतु उसके प्रत्यक्ष संपर्क का प्रवाह ना हो उदाहरण के लिए यातायात मेंव्यवधान व्यवसाय की ऐसी क्षति जिसकी भरपाई ना हो सके पारिवारिक आय की क्षति आदि।
क्षतियों के दोनों वर्ग में दो स्पष्ट उपवर्ग है:
- मूर्त क्षतियॉं: ऐसी वस्तुओं की क्षति जिनका कोई मौद्रिक मूल्य हो। उदाहरण के लिए इमारतें, अवसंरचना आदि
- अमूर्त क्षतियॉं: ऐसी चीजों की क्षति जिनका क्रय- विक्रय ना किया जा सकता हो। उदाहरण के लिए, जीवन की क्षति और चोट,विरासत की वस्तुएँ, स्मृति- चिन्ह आदि।
शहरी बाढ़ के कारण:
शहरों और कस्बों में बाढ़ नवीन परिघटना है। ऐसी एक छोटी सी समयावधि में भारी वर्षा की बढ़ती घटनाओं, जलमार्गों के अंधाधुंध अतिक्रमण, नालियों की अपर्याप्त क्षमता और जल निकास अवसंरचना के रखरखाव की कमी के कारण हो रहा है। शहरों के बीच वर्षा में विस्तृत विविधता है और, यहां तक की एक शहर के भीतर भी, वर्षा में व्यापक स्थानिक और कालिक भिन्नता दिखती है, उदाहरण के लिए मुंबई में 26 जुलाई 2005 को, कोलाबा में 72 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई थी, जबकि सांताक्रुज, जो 22 किलोमीटर दूर है, में 24 घंटे में 944 मिलीमीटर मीटर वर्षा दर्ज की गई थी।
- जलवायु परिवर्तन एवं वैश्विक तापन
- शहरी नियोजन
- शहरी प्रशासन की उदासीनता
- जल निकायों का अतिक्रमण
- जलग्रहण क्षेत्रों में वनों की कटाई
भारत में शहरी बाढ़(Urban Flood) का जोखिम:
- शहरी बाढ़, ग्रामीण बाढ़ से काफी भिन्न होती है क्योंकि शहरीकरण के परिणामस्वरुप जलग्रहन क्षेत्रों में शहरी अवसंरचना का विकास हो जाता है, इससे बाढ़ की प्रचंडता 1.8 से 8 गुण और बाढ़ की मात्रा 6 गुना तक बढ़ जाती है। ये क्षेत्र महत्वपूर्ण अवसंरचना के साथ आर्थिक गतिविधियों के घनी आबादी वाले केंद्र हैं। इन अवसंरचनाओं को सभी समय सुरक्षित किए जाने की आवश्यकता होती है। चेन्नई की बाढ़(2023 और 2015) कश्मीर की बाढ़(2014) सूरत की बाढ़(2006)और मुंबई की बाढ़(2005 और 2017) आदि घटनाएँ हमारे शहरों की सुभेध्दता को प्रदर्शित करती है।
शहरी बाढ़ के प्रभाव और शहरी बाढ़(Urban Flood) के लिए शमन( Mitigation) रणनीतियां:
- शहरी बाढ़ का वाणिज्यिक, औद्योगिक, व्यापारिक, आवासीय और संस्थागत स्थानों पर स्थानीय प्रभाव पड़ता है। जल आपूर्ति, सीवरेज, विद्युत आपूर्ति और संचार में व्यवधान बात है। वाणिज्यिक, औद्योगिक और व्यापारिक गतिविधियों का बंद होना और संपत्ति – परिसंपत्तियों की क्षति प्रायः देखी जाती है। यातायात (सड़क, रेल और वायु) में प्रायः व्यवधान आता है। अनधीकृत क्षेत्रों में नई स्लम बस्तियां अस्तित्व में आती है।
- शहरी बाढ़ का खतरा रोकने के लिए, प्रत्येक शहर की बाढ़ शमन(Mitigation) योजना (बाढ़ का मैदान, नदी बेसिन, भूपृष्ठीय जल आदि) को समग्र भूमि उपयोग नीति और शहर के मास्टर प्लान के साथ बेहतर तरीके से एकीकृत होना चाहिए।
शहरी बाढ़(Urban Flood) के प्रति प्रभावी और कुशल अनुक्रिया के लिए आपदा प्रबंधन के निम्नलिखित तीन चरण है:
- मानसून पूर्व चरण (तैयारी): इसमें आपातकालीन आवश्यकताओं का आकलन, हितधारकों (विशेष रूप से समुदायों) का प्रशिक्षण और सिमुलेशन अभ्यासों के माध्यम से इन रणनीतियों से परिचय, नालियों और सड़कों के रखरखाव के लिए टीमों की पहचान और जल – जमाव की रोकथाम के लिए अभ्यास आयोजित करना सम्मिलित है।
- मानसून के दौरान का चरण (पूर्व चेतावनी और प्रभावी अनुक्रिया): इसमें निवारक उपाय करने के लिए विभिन्न एजेंसियों को, वर्षा की तीव्रता के आधार पर समय पर, गुणात्मक और मात्रात्मक चेतावनी जारी करना सम्मिलित है। अनुक्रिया चरण मुख्य रूप से आपातकालीन राहत कार्यों पर ध्यान केंद्रित करता है, इसमें जान बचाना, प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराना, संचार और परिवहन प्रणालियों की क्षति को कम करना और उन्हें पुनर्स्थापित करना, आपदा से प्रभावित लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं (भोजन, जल और आश्रय) को पूरा करना तथा मानसिक स्वास्थ्य एवं आध्यात्मिक समर्थन के साथ-साथ सांत्वनापूर्ण देखभाल प्रदान करना सम्मिलित है।
- मानसून पश्चात् चरण: पुनर्स्थापना और पुनर्वास चरणों में आपदा स्थल और क्षतिग्रस्त सामग्रियों को सुदृढ़ और प्रयोग करने की स्थिति में पुनर्स्थापित करने के लिए कार्यक्रम का निर्धारण सम्मिलित है।
शहरीकरण से वर्ष में वृद्धि होती है: 1921 में वैज्ञानिकों ने पाया कि बड़े शहरों के ऊपर तड़ित झाझा का निर्माण होता है जबकि ग्रामीण इलाकों के ऊपर ऐसे किसी तड़ित झंझा का निर्माण नहीं होता इस शहरी उच्च माध्यमिक प्रभाव से बहुत अच्छी तरह समझा जा सकता है बढ़ती गर्मी बदल निर्माण को प्रेरित करती है और पगली शहर द्वारा प्रेषित संवहन के साथ अंतरक्रिया करके वर्षा करती है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- शहरी बाढ़ पर मानक संचालित प्रक्रिया
- आधारभूत संरचना विकास: (अटल कायाकल्प एवं शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत), राष्ट्रीय विरासत शहर विकास एवं वृद्धि योजना(ह्रदय), स्मार्ट सिटी मिशन आदि ।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना
- तूफान जल निकासी प्रणालियों पर मैनुअल
शहरी बाढ़ पर एनडीएमए (NDMA) के दिशा – निर्देशों पर संक्षिप्त बिंदु:
पूर्व चेतावनी प्रणाली और संचार: राष्ट्रीय जल मौसम विज्ञान नेटवर्क और डॉपलर मौसम रडार 3 से 6 घंटे पूर्व सूचना प्रदान कर सकते हैं। बाढ़ चेतावनी जारी किए जाने के बाद, इसे जनता तक प्रभावी ढंग से संचालित किया जाना चाहिए।
शहरी जल निकास की डिजाइन और प्रबंधन: तेज शहरीकरण के परिणामस्वरुप फुटपाथों, सड़कों और निर्मित क्षेत्रों के रूप में अप्रवेश्य सतहों में वृद्धि हुई है। इससे निस्यंदन (रिसाव) और प्राकृतिक भंडारण में कमी आई है।
जलनिकास प्रणाली: पंपिंग, भंडारण इत्यादि के समस्त विवरण के साथ जल आपूर्ति प्रणालियों, विशेष रूप से लघु जल निकासी प्रणालियों, की उचित सूची रखी जानी चाहिए।
डिजाइन के आधार के रूप में जलग्रहण: चुकी अपवाह प्रक्रियाएं राज्य और शहर की प्रशासनिक सीमाओं से स्वतंत्रता होती है, अतः जल अपवाह विभाजक की रूपरेखा वाटरशेड मानचित्रण पर आधारित होनी चाहिए।
समोच्च रेखा(contour lines) संबंधित आँकड़े: वाटरशेड/ जलग्रहण की सीमाओं और प्रवाह की दिशा के निर्धारण के लिए सटीक समोच्च रेखाओं का निर्धारण आवश्यक है।
डिजाइन फ्लो: पर्याप्त आकर निर्धारण और मात्रा नियंत्रण सुविधाओं के लिए चरम प्रवाह दर आकलन(peak flow rate estimation)।
ठोस अपशिष्ट को हटाना: अधिकांश कस्बों और शहरों में सड़क के किनारे खुली नालियां है जिनमें लोगों द्वारा अपशिष्ट और अनाधिकृत निपटान कर दिया जाता है। ठोस अपशिष्ट के कारण नालियों में जल प्रवाह बाधित होता है और सामान्यतः उनकी प्रवाह क्षमता कम हो जाती है।
ड्रेन इनलेट कनेक्टिविटी: यह देखा जाता है कि सड़क किनारे की नालियां में सड़क से पानी निकालने के लिए मुहाने या तो सही ढंग से बने हुए नहीं है, या अस्तित्व में ही नहीं है। इससे सड़कों पर जल भराव की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
वर्षा बगीचे(Rain Garden): पारगम्य मिट्टी को पलवार(Mulching) की पतली परत से ढक कर वर्षा बगीचे का निर्माण किया जाता है। अपवाहित जल को इस सुविधा में एकत्रित कर पौधे, मृदा पर्यावरण के माध्यम से निस्यंदित(filtered) होने दिया जाता है।
सुभेध्दता विश्लेषण और जोखिम आकलन: जोखिम वाले क्षेत्र की पहचान, कार्य के अनुसार संरचनाओं का वर्गीकरण और संकट जोखिम के आधार पर जोनों का वर्गीकरण(Hazard Risk Zoning) का उपयोग कर प्रत्येक संरचना और कार्य के लिए जोखिम का अनुमान।
शहरी बाढ़ प्रकोष्ठ: शहरी विकास मंत्रालय(MoUD) के अंतर्गत एक पृथक शहरी बाढ़ प्रकोष्ठ गठित किया जाएगा। यह राष्ट्रीय स्तर पर सभी शहरी बाढ़ आपदा प्रबंधन गतिविधियों का समन्वय करेगा। शहरी स्थानीय निकाय(ULBs) स्थानीय स्तर पर शहरी बाढ़ के प्रबंधन के लिए उत्तरदायी होंगे।
अनुक्रिया: आपातकालीन संचालन केंद्र, घटना अनुक्रिया प्रणाली, बाढ़ आश्रय-स्थल, खोज और बचाव अभियान तथा आपातकालीन लॉजिस्टिक्स बाढ़ अनुक्रिया तंत्र के कुछ महत्वपूर्ण कार्य क्षेत्र है।
स्वच्छता: पर्याप्त स्वच्छता और विसंक्रमण(Disinfection) के अभाव में मलेरिया, डेंगू और हैजा जैसे रोग फैल सकते हैं।
क्षमता विकास जागरूकता सृजन और दस्तावेजीकरण: स्थानीय सरकार और समुदाय दोनों को सम्मिलित करते हुए सहभागी शहरी बाढ़ नियोजन और प्रबंधन।
वर्तमान चुनौतियां:
- शहरी बाढ़ के व्यापक जोखिम आकलन को कम महत्व दिया जाना। इस आकलन में बाढ़ शमन उपायों की योजना निर्माण और उन्हें कार्यान्वित करने से पहले शहरी बाढ़ के जोखिमों की समझ, विश्लेषण और मूल्यांकन सम्मिलित है।
- विभिन्न शहरों में भिन्न-भिन्न कारकों और जोखिमों के मानचित्रण के प्रति अज्ञानता और इन्हें विकास योजना में सम्मिलित नहीं।
- जन जागरूकता और आपदा प्रबंधकों को पेशेवर प्रशिक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से अनुभव साझा करने के लिए विभिन्न संस्थानों के बीच असंतोषजनक समन्वय।
- सूचना साझाकारण का अभाव,
- एकीकृत निवेश निर्णय का अभाव, और
- हितधारकों के साथ परामर्श की कमी।
भविष्य की राह:
- हरित बुनियादी ढांचे का निर्माण
- व्यपक जल निकासी मास्टर प्लान
- शहरों की बाढ़ वहन करने की क्षमता का आकलन
- उचित विनियमित एवं निगरानी
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