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URBAN FLOOD शहरी बाढ़ Upsc 2024

City Flood

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शहरी बाढ़(Urban Flood) क्या है ? भारत में शहरी बस्तियों के अधीन क्षेत्रफल 2001 में 77370.50 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 2011 में 102220.16 वर्गकिलोमीटर हो गया है। यह शहरी उपयोग के अधीन लाए गए 24850 वर्ग किलोमीटर अतिरिक्त भूमि क्षेत्र को प्रदर्शित करता है। नदियों औरजलमार्गों के किनारे और अनियोजित विकास और फैलते आवासों के अतिक्रमण ने जलधाराओं के प्राकृतिक प्रवाह में हस्तक्षेप किया है। इसकेपरिणामस्वरुप शहरीकरण के अनुपात में रन – ऑफ में वृद्धि हुई है, जिससे शहरी बाढ़ (Urban Flood) की स्थितियां उत्पन्न हुई है।

शहरी बाढ़(Urban Flood) के परिणामस्वरुप होने वाली क्षतियॉं:

प्रत्यक्ष क्षतियॉं: बाढ़ के जल के प्रत्यक्ष संपर्क में आने से इमारत अवसर रचनाओं तथा मानव एवं पशु जीवन को होने वाली क्षतिया।

अप्रत्यक्ष क्षतियॉं: ऐसी क्षतिया जो बाढ़ की घटना का परिणाम हो किंतु उसके प्रत्यक्ष संपर्क का प्रवाह ना हो उदाहरण के लिए यातायात मेंव्यवधान व्यवसाय की ऐसी क्षति जिसकी भरपाई ना हो सके पारिवारिक आय की क्षति आदि।

क्षतियों के दोनों वर्ग में दो स्पष्ट उपवर्ग है:

शहरी बाढ़ के कारण:

शहरों और कस्बों में बाढ़ नवीन परिघटना है। ऐसी एक छोटी सी समयावधि में भारी वर्षा की बढ़ती घटनाओं, जलमार्गों के अंधाधुंध अतिक्रमण, नालियों की अपर्याप्त क्षमता और जल निकास अवसंरचना के रखरखाव की कमी के कारण हो रहा है। शहरों के बीच वर्षा में विस्तृत विविधता है और, यहां तक की एक शहर के भीतर भी, वर्षा में व्यापक स्थानिक और कालिक भिन्नता दिखती है, उदाहरण के लिए मुंबई में 26 जुलाई 2005 को, कोलाबा में 72 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई थी, जबकि सांताक्रुज, जो 22 किलोमीटर दूर है, में 24 घंटे में 944 मिलीमीटर मीटर वर्षा दर्ज की गई थी।

Urban Flood शहरी बाढ़

भारत में शहरी बाढ़(Urban Flood) का जोखिम:

 शहरी बाढ़ के प्रभाव और शहरी बाढ़(Urban Flood) के लिए शमन( Mitigation) रणनीतियां:

शहरी बाढ़(Urban Flood) के प्रति प्रभावी और कुशल अनुक्रिया के लिए आपदा प्रबंधन के निम्नलिखित तीन चरण है:

शहरीकरण से वर्ष में वृद्धि होती है: 1921 में वैज्ञानिकों ने पाया कि बड़े शहरों के ऊपर तड़ित झाझा का निर्माण होता है जबकि ग्रामीण इलाकों के ऊपर ऐसे किसी तड़ित झंझा का निर्माण नहीं होता इस शहरी उच्च माध्यमिक प्रभाव से बहुत अच्छी तरह समझा जा सकता है बढ़ती गर्मी बदल निर्माण को प्रेरित करती है और पगली शहर द्वारा प्रेषित संवहन के साथ अंतरक्रिया करके वर्षा करती है।

Urban Flood शहरी बाढ़

 

रकार द्वारा उठाए गए कदम:

शहरी बाढ़ पर एनडीएमए (NDMA) के दिशा – निर्देशों पर संक्षिप्त बिंदु:

पूर्व चेतावनी प्रणाली और संचार: राष्ट्रीय जल मौसम विज्ञान नेटवर्क और डॉपलर मौसम रडार 3 से 6 घंटे पूर्व सूचना प्रदान कर सकते हैं। बाढ़ चेतावनी जारी किए जाने के बाद, इसे जनता तक प्रभावी ढंग से संचालित किया जाना चाहिए।

शहरी जल निकास की डिजाइन और प्रबंधन: तेज शहरीकरण के परिणामस्वरुप फुटपाथों, सड़कों और निर्मित क्षेत्रों के रूप में अप्रवेश्य सतहों में वृद्धि हुई है। इससे निस्यंदन (रिसाव) और प्राकृतिक भंडारण में कमी आई है।

जलनिकास प्रणाली: पंपिंग, भंडारण इत्यादि के समस्त विवरण के साथ जल आपूर्ति प्रणालियों, विशेष रूप से लघु जल निकासी प्रणालियों, की उचित सूची रखी जानी चाहिए।

डिजाइन के आधार के रूप में जलग्रहण: चुकी अपवाह प्रक्रियाएं राज्य और शहर की प्रशासनिक सीमाओं से स्वतंत्रता होती है, अतः जल अपवाह विभाजक की रूपरेखा वाटरशेड मानचित्रण पर आधारित होनी चाहिए।

समोच्च रेखा(contour lines) संबंधित आँकड़े: वाटरशेड/ जलग्रहण की सीमाओं और प्रवाह की दिशा के निर्धारण के लिए सटीक समोच्च रेखाओं का निर्धारण आवश्यक है।

डिजाइन फ्लो: पर्याप्त आकर निर्धारण और मात्रा नियंत्रण सुविधाओं के लिए चरम प्रवाह दर आकलन(peak flow rate estimation)

ठोस अपशिष्ट को हटाना: अधिकांश कस्बों और शहरों में सड़क के किनारे खुली नालियां है जिनमें लोगों द्वारा अपशिष्ट और अनाधिकृत निपटान कर दिया जाता है। ठोस अपशिष्ट के कारण नालियों में जल प्रवाह बाधित  होता है और सामान्यतः उनकी प्रवाह क्षमता कम हो जाती है।

ड्रेन इनलेट कनेक्टिविटी: यह देखा जाता है कि सड़क किनारे की नालियां में सड़क से पानी निकालने के लिए मुहाने या तो सही ढंग से बने हुए नहीं है, या अस्तित्व में ही नहीं है। इससे सड़कों पर जल भराव की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

वर्षा बगीचे(Rain Garden): पारगम्य मिट्टी को पलवार(Mulching) की पतली परत से ढक कर वर्षा बगीचे का निर्माण किया जाता है। अपवाहित जल को इस सुविधा में एकत्रित कर पौधे, मृदा पर्यावरण के माध्यम से निस्यंदित(filtered) होने दिया जाता है।

सुभेध्दता विश्लेषण और जोखिम आकलन: जोखिम वाले क्षेत्र की पहचान, कार्य के अनुसार संरचनाओं का वर्गीकरण और संकट जोखिम के आधार पर जोनों का वर्गीकरण(Hazard Risk Zoning) का उपयोग कर प्रत्येक संरचना और कार्य के लिए जोखिम का अनुमान।

शहरी बाढ़ प्रकोष्ठ: शहरी विकास मंत्रालय(MoUD) के अंतर्गत एक पृथक शहरी बाढ़ प्रकोष्ठ गठित किया जाएगा। यह राष्ट्रीय स्तर पर सभी शहरी बाढ़ आपदा प्रबंधन गतिविधियों का समन्वय करेगा। शहरी स्थानीय निकाय(ULBs) स्थानीय स्तर पर शहरी बाढ़ के प्रबंधन के लिए उत्तरदायी होंगे।

अनुक्रिया: आपातकालीन संचालन केंद्र, घटना अनुक्रिया प्रणाली, बाढ़ आश्रय-स्थल, खोज और बचाव अभियान तथा आपातकालीन लॉजिस्टिक्स बाढ़ अनुक्रिया तंत्र के कुछ महत्वपूर्ण कार्य क्षेत्र है।

स्वच्छता: पर्याप्त स्वच्छता और विसंक्रमण(Disinfection) के अभाव में मलेरिया, डेंगू और हैजा जैसे रोग फैल सकते हैं।

क्षमता विकास जागरूकता सृजन और दस्तावेजीकरण: स्थानीय सरकार और समुदाय दोनों को सम्मिलित करते हुए सहभागी शहरी बाढ़ नियोजन और प्रबंधन।

वर्तमान चुनौतियां:

भविष्य की राह:

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