बाढ़ (Flood) क्या है ?
बाढ़ (Flood) किसी नदी के मार्ग के आसपास या समुद्र के तटवर्ती क्षेत्र में उच्च जल स्तर की स्थिति है, जिसके कारण भूमि जल से भर जाती है। भारत बाढ़ के प्रति अत्यधिक सुबह है राष्ट्रीय बढ़ आयोग के आकलन के अनुसार 329 मिलियन हेक्टेयर के कुल भौगोलिक क्षेत्र फल में से 40 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र बाढ़ वाला क्षेत्र है।
आकस्मिक बाढ़ क्या है:
- अपेक्षाकृत कम परिणाम किंतु तीव्र गति से प्रभावित जल के तेज चढ़ाव और उतार को आकस्मिक बाढ़ कहते हैं। इस प्रकार की बाढ़ अपनी आकस्मिकता के कारण भारी नुकसान पहुंचती है।
- आकस्मिक बाढ़ पहाड़ी और ढलान वाली भूमि में आती है जहां भारी वर्षा या बादल का फटना सामान्य रूप से घटित होते रहतते है।
- पूर्वी तटीय क्षेत्रों में दबाव और चक्रवर्ती तूफानों से भी आकस्मिक बाढ़ आ सकती है।
- नदी के ऊपरी प्रभाव पर स्थित जलाशयों से अचानक पानी छोड़ने या बांधों और नदियों के किनारो पर तटबंधों में दरार पड़ने से भी ऐसी बाढ़ आ जाती है।डॉप्लर रडारों का प्रयोग करके ऐसी बाढों का पूर्वानुमान लगाया जाता है और आकस्मिक बाढ़ की चेतावनी जारी की जाती है।
बाढ़ के कारण:
भारी वर्षा के पश्चात ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र से नीचे आए उच्च प्रवाह को अपने किनारो के भीतर सीमित रखने की नदियों की अपर्याप्त क्षमता सेबाढ़ आती है।अंधाधुन वनोन्मूलन, अवैज्ञानिक कृषि पद्धतियां, प्राकृतिक जल निकासी चैनलों का अवरोध होना तथा बाढ़ के मैदानों और नदी प्रवाह मार्ग में जनसंख्या का बसाव आदि कुछ ऐसे मानवीय क्रियाकलाप है। जो बाढ़ की तीव्रता, परिमाण और गंभीरता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।बाढ़ के कुछ कारण निम्नानुसार है।
प्राकृतिक कारण( Natural Causes)
- भारी वर्षा: नदी के जलग्रहण क्षेत्र में भारी वर्षा से जल नदी के किनारों के ऊपर से प्रभावित होने लगता है, इससे आसपास के इलाकों में बाढ़(flood) आ जाती है।
- अवसाद का निक्षेपण: अवसादन के कारण नदी तल उथला हो जाता है। ऐसी नदी की जल वहन क्षमता कम हो जाती है। फलस्वरुप, भारी वर्षा जल नदी के किनारो के ऊपर से प्रवाहित होने लगता है।
- चक्रवात: चक्रवात जनित असामान्य ऊंचाई वाली समुद्री तरंगे आस-पास के तटीय क्षेत्र को जल मग्न कर देती है। अक्टूबर 1994 में उड़ीसा चक्रवात से गंभीर बाढ़ आ गई थी तथा जान माल की अभूतपुर्व क्षति हुई थी।
- नदी के मार्ग में परिवर्तन: विसर्प(Meanders), नदी तल और किनारों के अपरदन तथा भूस्खलन के कारण प्रवाह में बाधा से भी नदी का मार्ग बदल जाता है तथा बाढ़ आ जाती है।
- सुनामी: सुनामी के आने पर विशाल तटीय भूभाग में ऊंची समुद्री लहरों के कारण बाढ़ आ जाती है।
- झीलों का अभाव: झीलें अतिरिक्त जल संग्रहित कर सकती है और जल का प्रवाह नियंत्रित कर सकती है। जिले छोटी हो जाने पर प्रवाह नियंत्रित करने की उनकी क्षमता कम हो जाती है और इसलिए बाढ़ आती है।
हिम का पिघलना और हिमनद का पिघलना धीमी गति से चलने वाली प्रक्रियाएं हैं सामान्यतः इससे बड़ी बाढ़(Flood) नहीं आती है। लेकिन कभी-कभी हिमनदों में बड़ी मात्रा में ठहरा हुआ जल उपस्थित होता है जो हिमखंड पिघलने के साथ अचानक से बह सकता है। इससे ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड(GLOF) की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
मानवजनित कारण:(Anthropogenic Causes)
- वनोंन्मूलन: वनस्पति भूमि में जल के अंतर सरवन की सुविधा प्रदान करती है वह उन्मूलन के परिणाम स्वरुप भूमि बड़ा मुक्त हो जाती है और जल तीव्र गति से प्रभावित होकर नदियों में जाता है और बाढ़ आती है।
- जल निकास प्रणाली में हस्तक्षेप: पुलों, सड़कों, रेल की पटरियों, नहरों आदि के खराब ढंग से नियोजित निर्माण से जलनिकास प्रणाली में आने वाला व्यवधान जल प्रवाह को बाधित करता है और फलस्वरुप बाढ़ आती है।
- अंतरराष्ट्रीय आयाम: चीन, नेपाल और भूटान से निकलने वाली नदियां उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश और असम राज्य में भारी बाढ़ लाती है। बाढ़ प्रबंधन के लिए पड़ोसी देश अर्थात चीन, नेपाल और भूटान के साथ सहयोग आवश्यक है।
- जनसंख्या का दबाव: विशाल जनसंख्या के कारण लकड़ी, भूमि, भोजन इत्यादि सामग्रियों की अधिक आवश्यकता होती है। इससे अतिचारन, भूमि अतिक्रमण, खेत की क्षमता से अधिक कृषि और मृदा अपरदन में वृद्धि होती है। इनके कारण बाढ़ आने का खतरा भी बढ़ जाता है।
- निम्न स्तरीय जल और सीवरेज प्रबंधन: शहरी क्षेत्रों में पुरानी जल निकासी और सिवरेज प्रणालियों की पूरी जांच पड़ताल करके उनकी संपूर्ण मरम्मत नहीं की गई है। प्रत्येक वर्ष वर्षा ऋतु के दौरान, जल निकासी और सीवर प्रणालियॉं ध्वस्त हो जाती है जिससे शहरों में बाढ़ आ जाती है।
भारत की बाढ़ (FLOOD) के संकट के प्रति सुभेद्दता:
बाढ़(flood) देश के लगभग सभी नदी बेसिनो में आती है। भारत में लगभग 12%(40 मिलियन हेक्टेयर) भूमि बाढ़ वाला क्षेत्र है। हमारे देश में 1200 मिली मीटर वार्षिक वर्षा होती है, जिसमें से 85% तीन-चार महीना अर्थात जून से सितंबर के दौरान होती है। तीव्र और आवधिक वर्षा के चलते देश की अधिकांश नदियों में भारी मात्रा में जल आ जाता है, जो उनकी वहन करने की क्षमता से अधिक होता है। इससे इस क्षेत्र में मामूली से लेकर गंभीर बाढ़ की स्थितियां उत्पन्न हो जाती है।
भारत में बाढ़(FLOOD) क्षेत्र का वितरण:
ब्रह्मपुत्र नदी क्षेत्र:
इस क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र और बराक तथा उनकी सहायक नदियां प्रभावित होती है। यह क्षेत्र ,असम अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा, नागालैंड, सिक्किम और पश्चिम बंगाल के उत्तरी भाग में फैला है।
- मानसून के दौरान इन नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में भारी वर्षा होती है।
- यह नदियां अपरदन के प्रति अतिसंवेदनशील भंगुर पहाड़ियों से निकलती है जिससे इनकी प्रवाह में भारी मात्रा में गाद निस्सरन( Discharge)होता है।
- यह क्षेत्र गंभीर और बार-बार आने वाले भूकंपों का क्षेत्र है। इससे अनेक भूस्खलन होते हैं जिनसे नदी तंत्र अस्त् व्यस्त हो जाती है।
- बादलों का फटना और उसके पश्चात् आने वाली आकस्मिक बाढ़(flood) तथा भारी मृदा अपरदन भी इस क्षेत्र की परिघटनाएं हैं ।
गंगा नदी क्षेत्र:
गंगा नदी की अनेक सहायक नदियां हैं। इनमें यमुना, सोन, घाघरा, गंडक, बुढी गंडक, बागमती, कमला, कोसी, महानंदा आदि प्रमुख है। इनका प्रवाह क्षेत्र उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, पंजाब, पश्चिम बंगाल के दक्षिणी और केंद्रीय भागों, हरियाणा के कुछ भागों, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली में विस्तृत है।
- बाढ़(flood) की समस्या मुख्य रूप से गंगा नदी के उत्तरी किनारो के क्षेत्रों तक ही सीमित है क्योंकि अधिकांश क्षति गंगा के उत्तरी सहायक नदियों के कारण होती है।
- सामान्यतः, पश्चिम से पूर्व और दक्षिण से उत्तर की ओर बाढ़ की समस्या में वृद्धि होती है।
- हाल के वर्षों में राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी भारी बाढ़ की कुछ घटनाएं हुई है।
- बस्तियों हेतु और विभिन्न विकास संबंधी गतिविधियों के लिए नदियों के बाढ़ मैदानों का बडे़ पैमाने पर अतिक्रमण इस क्षेत्र में बाढ़ आने का एक मुख्य कारण है।
उत्तर पश्चिम नदी क्षेत्र:
इस क्षेत्र की मुख्य नदियां सिंधु सतलज व्यास रवि चुनाव और झेलम है इनका प्रवाह क्षेत्र जम्मू कश्मीर पंजाब और हिमाचल प्रदेश हरियाणा और राजस्थान के कुछ भागों में विस्तृत है गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी क्षेत्र की तुलना में इस क्षेत्र में बाढ़ की समस्या अपेक्षाकृत कम है।
- अपर्याप्त भूपृष्ठीय(Surface) जल निकासी एक बड़ी समस्या है। इससे विशाल क्षेत्र में पानी ठहर जाता है और जलमग्न हो जाता है।
- सिंचाई के लिए जल के अंधाधुंध उपयोग तथा निचले और गहरे क्षेत्रों के विकास ने जल निकास को बाधित किया है एवं जल जमाव की समस्या उत्पन्न की है।
- यह नदियां बार-बार अपना मार्ग बदलता है और अपने पीछे रेतीले मलबे का विशाल क्षेत्र छोड़ जाती है।
मध्य और दक्कन भारत:
इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण नदियां नर्मदा, तापी, महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी है। इन नदियों को मार्ग अधिकांशतः सुनिश्चित और स्थाई है। इनमें इनके प्राकृतिक किनारों के भीतर, डेल्टा क्षेत्रों को छोड़कर शेष भागों में, बाढ़ के जल को प्रवाहित करने के लिए पर्याप्त क्षमता मौजूद है। इस क्षेत्र में उड़ीसा के कुछ नदियां महानदी, ब्राह्मणी, वैतरणी, स्वर्णरेखा प्रतिवर्ष बाढ़ ग्रस्त हो जाती है। इन्हें छोड़कर इस क्षेत्र में बाढ़ की कोई गंभीर समस्या नहीं है। मानसूनी दबाव और चक्रवाती तूफानों के चलते पूर्वी तट के राज्यों का डेल्टाई और तटीय क्षेत्र समय-समय पर बाढ़ और जल निकासी की समस्या का सामना करता है।
बाढ़(Flood) के परिणाम:
- कृषि भूमि और मानव बस्ती के बार-बार जलमग्न होने के राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और समाज के लिए गंभीर परिणाम होते हैं।
- बाढ़ से मूल्यवान फैसले नष्ट हो जाती है और साथ ही सडकों, पुलों, पटरियों जैसी भौतिक अवसंरचनाओं तथा मानव बस्तियों का भी नुकसान पहुंचता है।
- बाढ़ से लाखों लोग बेघर हो जाते हैं। साथ ही साथ कई लोग और पशु बाढ़ के साथ बह भी जाते हैं।
- बाढ़ प्रभावित इलाकों में हैजा, हेपेटाइटिस और अन्य दूषित जल जनित बीमारियों का प्रसार हो सकता है।
- दूसरी ओर बाढ़ के कुछ लाभ भी हैं। प्रत्येक वर्ष बाढ़ खेतों में उपजाऊ मिट्टी लाकर जमा करती है, जो फसलों के लिए बहुत लाभदायक होती है।
बाढ़(FLOOD) प्रबंधन पर National Disaster Management Authority के दिशा निर्देश
भारत में अभी तक प्रारंभ किए गए बाढ़ संरक्षण कार्यक्रमों का जोर मुख्य रूप से संरचनात्मक उपायों पर रहा है।
बाढ़(FLOOD) रोकथाम तैयारी और सामान:
संरचनात्मक उपाय(Structural Measure)
- जलाशय,बांध अन्य जल भंडार: नदियों के मार्ग में जलाशयों का निर्माण करके बाढ़(flood) के समय अतिरिक्त जल को इकट्टा किया जा सकता है। हालांकि, अभी तक अपनाए गए इस प्रकार के उपाय सफल नहीं रहे हैं। उदाहरणस्वरूप, दामोदर नदी की बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए बांध बाढ़ नियंत्रित नहीं कर सके।
- तटबंध/बाढ़ सुरक्षा बांध/बाढ़ सुरक्षा दीवारें: बाढ़ से सुरक्षा करने वाले तटबंधों का निर्माण करके, बाढ़ के जल को नदी तट से बाहर बहाने और आसपास के इलाकों में फैलने से रोका जा सकता है। उदाहरणस्वरूप दिल्ली के निकट यमुना पर तटबंध का निर्माण बाढ़ नियंत्रित करने में सफल रहा है।
- जल निकासी में सुधार: सामान्यतः सड़कों, नहरों, रेल पटरियों आदि के निर्माण से जल निकासी प्रणाली अवरुद्ध हो जाती है। यदि जल निकासी प्रणाली के मूल रूप को पुनर्स्थापित कर दिया जाए तो बाढ़ को रोका जा सकता है।
- नदी जल मार्ग में सुधार/गाद निकलना: नदी जल मार्ग की जलवहन क्षमता में सुधार करके बाढ़ के जल के प्रवाह के वर्तमान उच्च स्तर को काम किया जा सकता है। इसका उद्देश्य नदी की वहन क्षमता बढ़ाने के लिए प्रवाह के क्षेत्र या प्रवाह के वेग( या दोनों) को बढ़ाना होता है। स्थानीय स्तर पर समस्या से निपटने के उपाय के रूप में मुहाने/संगम या स्थानीय जलग्रहण क्षेत्रों में चयनात्मक गाद निकासी / तलकर्षण उपायों को अपनाया जा सकता है।
- बाढ़ के जल को मोड़ना: बाढ़ मैदाने के भीतर या कुछ स्थितियों में इससे बाहर प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से निर्मित जल वाहिकाओं में बाढ़ के पूरे जल या जल के कुछ भाग को मोड़ना, नदी में जल स्तर को कम करनेका एक उपयोगी माध्यम है।
- श्रीनगर शहर के चारों ओर बाढ़ जल निकासी चैनल और दिल्ली में सप्लीमेंट्री ड्रेन शहरीकृत क्षेत्र में बाढ़ को रोकने के लिए अतिरिक्त जल कोमोड़ने के उदाहरण है।
- जल ग्रहण क्षेत्र उपचार/वनीकरण: वाटरशेड प्रबंधन उपाय जैसे की वनस्पति आवरण विकसित करना अर्थात वनीकरण और चेक डैम, अवरोधबेसिन इत्यादि जैसे संरचनात्मक कार्यों के साथ मृदा आवरण का संरक्षण, बाढ़ की प्रचंड़ता को कम करने और अपवाह की आकस्मिकता कोनियंत्रित करने हेतु प्रभावी उपाय के रूप में कार्य करते हैं।
गैर संरचनात्मक उपाय:
बाढ़ के मैदाने का जोनों में वर्गीकरण: यह बाढ़ से अधिकतम लाभ प्राप्ति हेतु बाढ़ के कारण होने वाली क्षती को सीमित करने के लिए बाढ़के मैदाने (टाल) में भूमि के उपयोग को नियंत्रित करने हेतु किया जाता है।
फ्लड प्रूफिंग: यह संकट के अल्पिकरण (Mitigation) में सहायता करता है और बाढ़(flood) प्रवण क्षेत्र में जनसंख्या को तत्काल राहत प्रदान करताहै। यह संरचनात्मक परिवर्तन और आपातकालीन कार्यवाही का संयोजन है किंतु इसमें लोगों को प्रभावित क्षेत्रों से बाहर निकलना सम्मिलितनहीं है। इसमें लोगों और मवेशियों के लिए बाढ़ आश्रय के लिए ऊंची समतल भूमि प्रदान करना, सार्वजनिक उपयोगितासंस्थापनाओं(Establishments), विशेष रूप से पीने के पानी के हैंडपंपों और बोरवेल का प्लेटफार्म बाढ़ के स्तर से ऊपर उठाना तथा दोमंजिला इमारतों का निर्माण प्रोत्साहित करना सम्मिलित है। जिसमें उपरी मंजिल का उपयोग बाढ़ के दौरान आश्रय स्थल के लिए किया जासकता है।
बाढ़(Flood) प्रबंधन योजनाएं: सभी सरकारी विभागों और एजेंसी को अपनी स्वयं की बाढ़ प्रबंधन योजनाएं योजनाएं तैयार करनी चाहिए।
भारत में बाढ़(flood0 का पूर्वानुमान और चेतावनी: बाढ़(FLOOD) पूर्वानुमान के लिए जल प्रवाह और वर्षा के रियल टाइम आंकड़े आधारभूत आवश्यकता है। अधिकांश जल मौसम विज्ञान संबंधी आंकड़े केंद्रीय जल आयोग के क्षेत्रीय केंद्रों का द्वारा प्रेक्षित और एकत्र किए जाते हैं। आईएमडी (IMD) दैनिक वर्षा संबंधी आंकड़े प्रदान करता है।
आपदा मित्र योजना: NDMA (National Disaster Management Authority) ने भारत के 25 राज्यों के 30 सर्वाधिक बाढ़ वाले जिलों में आपदा अनुक्रिया में समुदाय के स्वयंसेवकों के प्रशिक्षण पर केंद्रित एक केंद्र प्रायोजित योजना को स्वीकृति दी है। इसका उद्देश्य समुदाय के स्वयंसेवकों को ऐसे कौशलों में प्रशिक्षित करना है जिनकी उन्हें बाढ़, आकस्मिक बाढ़ और शहरी बाढ़ जैसी आपातकालीन स्थितियों में आधारभूत राहत और बचाव कार्यों के दौरान आवश्यकता होगी। इन कौशलों के माध्यम से वे आपातकालीन सेवाओं के तत्काल उपलब्ध न हो पाने की स्थिति में अपने समुदाय की तात्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उचित अनुक्रिया करने में समर्थ हो सकेंगे।
Read more – BLUE ECONOMY ब्लू इकनॉमी
– HIMALAYAN ECOSYSTEM UPSC2024