शीत लहर(Cold Waves) क्या है?
- शीत लहर(Cold Waves) किसी विस्तृत क्षेत्र में वायु के ठंडा होने या अत्यंत ठंडी वायु के प्रवेश द्वारा चिन्हित एक मौसमी परिघटना है। यह अत्यंत ठंडी मौसम वालीएक दीर्घकालिक अवधि भी हो सकती है। इस स्थिति के दौरान उच्च अक्षांशीय पवनें(High Winds) भी प्रवाहित हो सकती है, जिससे वायु मेंशीतलक प्रभाव(Wind Chill) अत्यधिक बढ़ जाता है। शीत लहर(Cold Waves), ठंड के मौसम से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाओं यथा हिमझंझावात या बर्फीलेतूफान से पहले या उनके साथ प्रवाहित हो सकती है।
शीत लहर(Cold Waves) के कारण:
- भारत में शीत लहर(Cold Waves) का विस्तृत अपेक्षाकृत उच्च अक्षांशों से ठंडी वायु के आगमन के कारण होता है। यह सामान्यता अल नीनो, चक्रवातीय गतिविधियों तथा जेट धाराओं पश्चिमी विक्षोभ से संबंध होती है।
- पश्चिमी विक्षोभ 20 डिग्री N के उत्तर में ऊपरी क्षोभमंडलीय पछुआ पवनों के साथ पूर्व की ओर अग्रसर सुस्पष्ट गर्त(Troughs) के रूप में प्रकट होतेहैं, और प्रायः निचले क्षोभमंडल तक विस्तारित होते हैं। यह उत्तरी अक्षांश से ठंडी वायु को भारत की ओर ले आते हैं। उत्तरी अरब सागर के ऊपर निम्न दाब तंत्र के विकसित होने के कारण भी शीत लहर(Cold Waves) के कुछ दृष्टांत सामने आते हैं। इन स्थितियों में, निम्न दाब तंत्र के उत्तर की ओर की पूर्वा पवनें उच्च अक्षांशों से ठंडी पवनें साथ लाती है।
भारत में शीतलहर(Cold Waves) संबंधी खतरे:
शीत ऋतु में नवंबर से फरवरी के मध्य चलने वाली शीत लहर(Cold Waves) उत्तर भारत के लोगों के लिए खासी परेशानी का कारण बन जाती है। शीत लहरों के विस्तार के दौरान न्यूनतम तापमान में 4 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक की गिरावट देखी जाती है। यह दौर सामान्यत 3 से 5 दिनों तक चलताहै तथा जनवरी में ऐसी स्थितियां सर्वाधिक देखने को मिलती है।
भारत में शीत लहर(Cold Waves) का वितरण प्रतिरूप:
उत्तरी भारत(North India)-
उत्तरी मैदानों में दिसंबर से जनवरी सर्वाधिक ठंडे महीने होते हैं। पंजाब तथा राजस्थान में रात्रि कालीन तापमान के हिमांग के भी नीचे जाने की संभावना रहती है। उत्तर भारत में अत्यधिक ठंड के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
- समुद्र के समकारी प्रभाव से बहुत दूर स्थित होने के कारण पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान जैसे राज्यों में महाद्वीपीय जलवायु पाई जाती है।
- निकटवर्ती हिमालय पर्वत श्रेणियां में होने वाली बर्फबारी के कारण शीतलहर की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
फरवरी के आसपास कैस्पियन सागर तथा तुर्कमेनिस्तान से आने वाली ठंडी पवनें भारत के उत्तर- पश्चिमी भागों में तुषार तथा कोहरे के साथ-साथ शीत लहर(Cold Waves) के आगमन का कारण बनती है।
प्रायद्वीपीय क्षेत्र:
भारत के प्रायद्वीपीय क्षेत्र में स्पष्ट रूप से परिभाषित शीत ऋतु नहीं होती हैं। समुद्री समकारी प्रभाव तथा विषुवत रेखा से निकटता के कारण तटीय क्षेत्रों में तापमान के वितरण प्रतिरूप है कदाचित ही कोई मौसमी परिवर्तन आता है।
शीत लहर के प्रभाव:
- तुषार के साथ यह कृषि यह कृषि, अवसंरचना तथा संपत्ति को नुकसान पहुंचा सकती है।
- भारी हिमपात तथा अत्यधिक ठंड के कारण संपूर्ण क्षेत्र निष्क्रिय हो सकता है।
- हम आंधियों के कारण बाढ़ आना, तूफान महोर्मि, राजमार्ग एवं सड़के अवरूद्ध होना, बिजली की लाइनों का धाराशायी होना तथा हाइपोथर्मिया।
- आर्थिक तथा मानवीय क्षति।
विंड चिल(Wind Chill)- यह वास्तविक तापमान नहीं बल्कि खुली त्वचा पर पवन एवं ठंड का एहसास होता है जैसे-जैसे पवन आगे बढ़ती है अत्यंत तीव्रता से शरीर में ऊष्मा की कमी होती है तथा शरीर का तापमान कम होने लगता है जीव जंतु भी विभिन्न चल से प्रभावित होते हैं, हालांकि गाड़ियां वनस्पतियां एवं अन्य वस्तुएं प्रभावित नहीं होती है।
शीतदंश(Frostbite)- शीतदंश से आशय अत्यधिक ठंड के कारण शरीर के ऊतक को होने वाले नुकसान से है। -20 डिग्री फारेनहाइट पर विंड चिल Windchill के कारण मात्र 30 मिनट में शीतदंश की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। शीतदंश के कारण संवेदनशून्यता तथा नाक, कान, उंगलियों, पैर की उंगलियां आदि के अग्रभाग की त्वचा सफेद या पीली पड़ जाती है। यदि किसी व्यक्ति में ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं तो उसे तुरंत चिकित्सीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए। चिकित्सीय सहायता प्राप्त होने में विलंब की स्थिति में व्यक्ति के प्रभावित अंगों को धीरे-धीरे पुनः गर्मी दी जानी चाहिए। हालांकि यदि व्यक्ति में हाइपोथर्मिया के लक्षण भी देखे जाते हैं, तो इन अग्रभागों को गर्म करने से पहले मुख्य शरीर को गर्मी प्रदान की जानी चाहिए।
हाइपोथर्मिया(Hypothermia)- यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब शरीर का तापमान 95 डिग्री फारेनहाइट से भी काम हो जाता है। इसमें मृत्यु भी हो सकती है। वे व्यक्ति जो जीवित रह जाते हैं उन्हें स्थाई रूप से गुर्दे, अग्नाशय एवं यकृत संबंधी समस्या की संभावना रहती है। चेतावनी संबंधी संकेतकों में अनियंत्रित कंपकंपी, याददाश्त जाना, आत्मविस्मृति, विचारों में असंबद्धता, बोलने मे कठिनाई, सुस्ती और अत्यधिक थकान सम्मिलित है। ऐसे लक्षण दिखने पर व्यक्ति के शरीर के तापमान की जांच की जानी चाहिए तथा उसके 95 डिग्री फारेनहाइट से कम होने की स्थिति में तत्काल चिकित्सीय देखभाल प्रदान की जानी चाहिए।
शीत लहर के संकट का शमन:
- शीत लहर पाले की स्थिति में, राज्य को इनके प्रभाव को कम करने हेतु संबंधित राज्य कृषि विश्वविद्यालय के परामर्श से तथा जिला फसल आकस्मिकता योजनाओं में रेखांकित नियमों के अनुसार स्थान विशिष्ट उपायों को कार्यान्वित करने की आवश्यकता होती है।
- किसानों को आवश्यकता अनुसार निम्न सिंचाई, शाखाओं या कोंपलों के क्षतिग्रस्त किनारों की छंटाई करने, बगीचों में अवशिष्ट पदार्थों को जलाकर दुआ करने, मृत भागों की छंटाई कर फसलों को पुनः नवजीवन प्रदान करने तथा पत्तियों पर छिड़काव के माध्यम से उर्वरक की अतिरिक्त खुराकों की आपूर्ति करने की आवश्यकता होती है।
- सुभेद्द जनसंख्या को ठंड से बचने के लिए विद्यालयों तथा अन्य सार्वजनिक इमारतों को आश्रय- स्थलों में परिवर्तित करने की संभावनाओं से संबंधित योजना तैयार करना।
- बच्चों, वृद्ध एवं बीमार व्यक्तियों पर ठंड से होने वाले प्रभावों के प्रति जागरूक तथा अभिगम एवं तैयारी संबंधी प्रयासों को बढ़ावा देना।
- बाह्य दीवारों से लगी पाइपलाइनों पर ऊष्मा रोधी परत चढ़ाना ताकि उनके भीतर का जल जमे नहीं और जलापूर्ति के प्रभावित होने की संभावना कम हो सके।
- अपने घर के लिए शीत ऋतु हेतु एक किट तैयार कर रखना। मानक आधारभूत घरेलू आपातकालीन किट के अतिरिक्त ऐसे खाद्य पदार्थ रखना जिन्हे पकाने या फ्रिज में रखने की आवश्यकता ना हो। साथ ही जल, कंबल, सेंधा नमक तथा बिजली आपूर्ति व्यवस्था भंग होने की स्थिति में अपने घर को सुरक्षित तरीके से गर्म रखने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- समुदायों तथा स्थानीय शासन के पर्याप्त तैयारी शीत लहर के कारण होने वाली मौतों में कमी ला सकती है।
शीतलहर संकट प्रबंधन के मार्ग में वर्तमान बाधाएं:
- चूँकि शीत लहर/ पाला एक स्थानीय आपदा है, अतः इसके लिए राष्ट्रीय स्तर की योजनाओं की बजाय संबंधित राज्य सरकारों द्वारा स्थान विशिष्ट शमनकारी योजनाएं तैयार किये जाने की आवश्यकता होती है।
- स्थानीय स्तर पर SHGs तथा PRIs आदि की भागीदारी की कमी।
- समय पूर्व तैयारी का अभाव।
नोट: वर्ष 2016 में, शीत लहर तथा हीट वेव को परिभाषित करने वाले मानकों में परिवर्तन कर राष्ट्रीय मौसम संस्थान आईएमडीबी(India Meteorological Department) ने एक नई नियमावली को अंगीकृत किया है।
- शीत लहर – न्यूनतम तापमान 4 डिग्री सेल्सियस या उससे कम।
- प्रचंड शीत लहर- न्यूनतम तापमान 2 डिग्री सेल्सियस या उससे कम।
- ठंडा दिन- (यह तभी लागू होगा जब मैदाने में न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस या उससे कम हो और पर्वतीय प्रदेशों में 0 डिग्री सेल्सियस या उससे कम हो) अधिकतम तापमान विचलन – 4.5 डिग्री सेल्सियस से -6.5 डिग्री सेल्सियस।
- अत्यधिक ठंडा दिन- अधिकतम तापमान विचलन माइनस 6.4 डिग्री सेल्सियस से अधिक
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