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Cold Waves शीत लहर UPSC2024

Cold waves

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शीत लहर(Cold Waves) क्या है?

शीत लहर(Cold Waves) के कारण:

भारत में शीतलहर(Cold Waves) संबंधी खतरे:

शीत ऋतु में नवंबर से फरवरी के मध्य चलने वाली शीत लहर(Cold Waves) उत्तर भारत के लोगों के लिए खासी परेशानी का कारण बन जाती है। शीत लहरों के विस्तार के दौरान न्यूनतम तापमान में 4 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक की गिरावट देखी जाती है। यह दौर सामान्यत 3 से 5 दिनों तक चलताहै तथा जनवरी में ऐसी स्थितियां सर्वाधिक देखने को मिलती है।

भारत में शीत लहर(Cold Waves) का वितरण प्रतिरूप:

उत्तरी भारत(North India)-

उत्तरी मैदानों में दिसंबर से जनवरी सर्वाधिक ठंडे महीने होते हैं। पंजाब तथा राजस्थान में रात्रि कालीन तापमान के हिमांग के भी नीचे जाने की संभावना रहती है। उत्तर भारत में अत्यधिक ठंड के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:

फरवरी के आसपास कैस्पियन सागर तथा तुर्कमेनिस्तान से आने वाली ठंडी पवनें भारत के उत्तर- पश्चिमी भागों में तुषार तथा कोहरे के साथ-साथ शीत लहर(Cold Waves) के आगमन का कारण बनती है।

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प्रायद्वीपीय क्षेत्र:

भारत के प्रायद्वीपीय क्षेत्र में स्पष्ट रूप से परिभाषित शीत ऋतु नहीं होती हैं। समुद्री समकारी प्रभाव तथा विषुवत रेखा से निकटता के कारण तटीय क्षेत्रों में तापमान के वितरण प्रतिरूप है कदाचित ही कोई मौसमी परिवर्तन आता है।

शीत लहर के प्रभाव:

विंड चिल(Wind Chill)- यह वास्तविक तापमान नहीं बल्कि खुली त्वचा पर  पवन एवं ठंड का एहसास होता है जैसे-जैसे पवन आगे बढ़ती है अत्यंत तीव्रता से शरीर में ऊष्मा की कमी होती है तथा शरीर का तापमान कम होने लगता है जीव जंतु भी विभिन्न चल से प्रभावित होते हैं, हालांकि गाड़ियां वनस्पतियां एवं अन्य वस्तुएं प्रभावित नहीं होती है।

शीतदंश(Frostbite)- शीतदंश से आशय अत्यधिक ठंड के कारण शरीर के ऊतक को होने वाले नुकसान से है। -20 डिग्री फारेनहाइट पर विंड चिल Windchill के कारण मात्र 30 मिनट में शीतदंश की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। शीतदंश के कारण संवेदनशून्यता तथा नाक, कान, उंगलियों, पैर की उंगलियां आदि के  अग्रभाग की त्वचा सफेद या पीली पड़ जाती है। यदि किसी व्यक्ति में ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं तो उसे तुरंत चिकित्सीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए। चिकित्सीय सहायता प्राप्त होने में विलंब की स्थिति में व्यक्ति के प्रभावित अंगों को धीरे-धीरे पुनः गर्मी दी जानी चाहिए। हालांकि यदि व्यक्ति में हाइपोथर्मिया के लक्षण भी देखे जाते हैं, तो इन अग्रभागों को गर्म करने से पहले मुख्य शरीर को गर्मी प्रदान की जानी चाहिए।

हाइपोथर्मिया(Hypothermia)- यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब शरीर का तापमान 95 डिग्री फारेनहाइट से भी काम हो जाता है। इसमें मृत्यु भी हो सकती है। वे व्यक्ति जो जीवित रह जाते हैं उन्हें स्थाई रूप से गुर्दे,  अग्नाशय एवं यकृत संबंधी समस्या की संभावना रहती है। चेतावनी संबंधी संकेतकों में अनियंत्रित कंपकंपी, याददाश्त जाना, आत्मविस्मृति, विचारों में असंबद्धता, बोलने मे कठिनाई, सुस्ती और अत्यधिक थकान सम्मिलित है। ऐसे लक्षण दिखने पर व्यक्ति के शरीर के तापमान की जांच की जानी चाहिए तथा उसके 95 डिग्री फारेनहाइट से कम होने की स्थिति में तत्काल चिकित्सीय देखभाल प्रदान की जानी चाहिए।

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शीत लहर के संकट का शमन:

शीतलहर संकट प्रबंधन के मार्ग में वर्तमान बाधाएं:

 नोट: वर्ष 2016 में, शीत लहर तथा हीट वेव को परिभाषित करने वाले मानकों में परिवर्तन कर राष्ट्रीय मौसम संस्थान आईएमडीबी(India Meteorological Department) ने एक नई नियमावली को अंगीकृत किया है।

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