धर्म सुधार आंदोलन Religious Reform Movement UPSC 2024 Free Notes

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रिचय

  • आधुनिक पश्चिमी के उद्भव में धर्म सुधार आंदोलन (Religious Reform Movement) की विशिष्ट भूमिका रही क्योंकि इसने प्रचलित दो मध्ययुगीन संस्थाओं यथा, सर्वव्यापी चर्च व्यवस्था एवं पवित्र रोमन साम्राज्य में दरारें उत्पन्न कर दी। इस तरह इसने राष्ट्रीय राज्यों के उद्भव का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
  • 16वीं शताब्दी में जो धर्म सुधार आंदोलन हुए, उन्हें सही अर्थों में पुनर्जागरण का ही विस्तार कहा जा सकता है। इस समय सामंतवाद औरउससे जुड़ी आर्थिक, सामाजिक, बौद्धिक एवं राजनीतिक मान्यताएँ कमजोर हो रही थी। लेकिन धर्म एवं चर्च का प्रभाव अभी भी स्थायीबना हुआ था।
  • यूरोप में पुनर्जागरण के समानांतर एक और सुधार आंदोलन का सूत्रपात हुआ, जिसे इतिहास में धर्म सुधार आंदोलन के नाम से जानाजाता है मध्यकाल में ईसाई धर्म दो प्रमुख शााखाओं  –रोमन कैथोलिक चर्च और पूर्वी ऑर्थोडॉक्स चर्च में विभाजित हो गया था।

धर्म सुधार आंदोलन को धार्मिक क्षेत्र में पुनर्जागरण का विस्तार मानना उचित नहीं है क्योंकि दोनों के आधार बहुत बातों में भिन्न हैं –

धर्म सुधार आंदोलन
धर्म सुधार आंदोलन
  1. पुनर्जागरण की दृष्टि इहलौकिक एवं प्राकृतिक है जबकि धर्म सुधार आंदोलन की मुख्य चिंता पारलौकिक एवं आध्यात्मिक है।
  2. पुनर्जागरण का आभिजात्य आधार था जबकि धर्म सुधार आंदोलन को जनाधार प्राप्त था।
  3. पुनर्जागरण से जुड़े विचारक नागरिक मूल्यों एवं सहनशीलता में विश्वास करते थे, जबकि लूथर एवं काल्विन के अनुगामी आस्था को अधिक मूल्यवान मानते थे।
  4. एक दृष्टि से धर्मसुधार आंदोलन पुनर्जागरण  की तुलना में बड़ी तीव्रता से अतीत से संबंध विच्छेद करता है।

करण:

  • पुनर्जागरण में यूरोपीय जनमानस में जिस नवीन चेतना का संचार किया था, उसने रोमन चर्च व्यवस्था की उन सभी मान्यताओं पर प्रहार किया जो गैर – तार्किक या आने अनैतिहासिक थी। इसी क्रम में पीटर लोंबार्ड और थॉमस एक्विनास की मान्यताओं के विरुद्ध संत ऑगस्टाइन (Saint Augustine) की मान्यताओं को स्वीकार किया जाने लगा।
  • प्राचीन ग्रीक और रोमन साहित्य के पुनरुत्थान के कारण संत ऑगस्टाइन के विचारों पर नवीन प्रकाश पड़ा। यह विचार पीटर लोंबार्ड और टॉस एक्वींस की मान्यताओं के विरुद्ध हो गया जिससे तत्कालीन चर्च व्यवस्था के लिए संकट की स्थिति उत्पन्न हो गयी। इस प्रकार इसने धर्म सुधार आंदोलन के लिए दार्शनिक आधार तैयार कर लिया।
  • 15वीं एवं 16वीं सदी में चर्च के अंतर्गत अनेक बुराइयाँ व्याप्त थी, जैसे- पादरियों की अज्ञानता और विलासिता, चर्च के पदों एवं सेवाओं की बिक्री, संबंधियों द्वारा एक से अधिक पद पर बने रहना आदि। यह सभी बुराइयाँ बढ़ते असंतोष एवं शिकायत की परिणाम थी।
  • पुनर्जागरण के कारण प्रांतीय भाषाओं का उदय हुआ और राष्ट्रीयता की भावना प्रबल हुई। अन्य देशों के राष्ट्रवादियों (Nationalists) के लिए रोम स्थिति पोप एक विदेशी था।
  • यह माना जाता था कि एक अच्छे इसाई का जीवन जीने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए इन पादरियों की मध्यस्थता परम आवश्यक है। इस प्रकार मोक्ष या पाप मुक्ति सत्कर्मों पर निर्भर करता था।
  • उसी प्रकार मोक्ष के लिए सात धार्मिक अनुष्ठानों (Seven sacrements) का आयोजन, जिनकी अध्यक्षता केवल पादरी ही कर सकते थे, आवश्यक था। इस तरह मध्यकालीन चर्च व्यवस्था में बहुत सारी बुराइयाँ और निरर्थक कर्मकांड घर कर गए थे और निश्चय ही मुक्ति पत्र की बिक्री (Sale of indulgences) उन बुराइयों की पराकाष्ठा थी ।
  • क्षमापत्रों की बिक्री धर्म सुधार आंदोलन का तात्कालिक कारण था। वस्तुत: क्षमापत्र (The Letter of Indulgence) धर्म युद्धों के दौरान उन लोगों को प्रदान किया जाता था, जो ईसाई धर्म के प्रचार – प्रसार के लिए अपनी सेवा प्रदान करते थे।
  • कैथोलिक संप्रदाय में पादरियों को विवाह करने की अनुमति नहीं थी, परंतु कई पादरीयों ने विवाह कर लिया, इससे भी चर्च का पवित्र जीवन अनैतिक बनता जा रहा था।
  • कैथोलिक संप्रदाय में ब्याज लेने एवं देने की मनाही थी। औद्योगिक नगरों के विकास, बढ़ते हुए अंतरराष्ट्रीय विकास एवं भौगोलिक मार्गो की खोज के कारण अत्यधिक पूंजी की आवश्यकता होने लगी। मार्टिन लूथर ने ब्याज लेने अथवा देने को धर्म के विरुद्ध नहीं माना। अतः व्यापारियों ने खुले रूप से लूथर का समर्थन किया।धर्म सुधार आंदोलन

धर्म सुधार आंदोलन जर्मनी में ही क्यों ?

  • चर्च के अधीन जर्मनी की अधिक उपजाऊ भूमिका होना ।
  • सबसे अधिक धार्मिक बुराइयां उत्तरी जर्मनी में थी, इसका कारण था शक्तिशाली राजतंत्र की अनुपस्थिति।
  • जर्मनी में नव स्थापित विश्वविद्यालयों में धर्म सुधार आंदोलन का वैचारिक आधार तैयार किया।

विशेषता:

  • यद्यपि यह धर्म आंदोलन था परंतु तात्कालिक आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व बौद्धिक- सांस्कृतिक परिपेक्ष से भी महत्वपूर्ण था।
  • धर्म सुधार उन आंदोलन से जुड़ा था, जिन्होंने मध्य युग का अंत तथा आधुनिक युग का निर्माण किया।
  • धर्म सुधार आंदोलन में आर्थिक एवं राजनीतिक मुद्दे भी निहित थे। एक तरफ इसे जहाँ नवोदित मध्यवर्ग का समर्थन प्राप्त हुआ, वहीं दूसरी तरफ यूरोप के महत्वाकांक्षी शासकों ने राष्ट्रीय राजतंत्र की स्थापना के लिए प्रोटेस्टेंट आंदोलन का इस्तेमाल किया।

प्रोटेस्टेंट आंदोलन के प्रमुख संप्रदाय (Important Sects of protestant Movement):

  • यद्यपि प्रोटेस्टेंड आंदोलन के तीन संप्रदायों के नेता और उनके सिद्धांत अलग-अलग थे तथापि ये तीनों संप्रदाय कुछ आधारभूत मुद्दों पर सहमत थे। तीनों पोप एवं रोमन चर्च व्यवस्था के प्रबल विरोधी थे। पाप – मुक्ति पत्र, संस्कार, कृपा आदि को अस्वीकार करते थे। आम लोगों के मध्य स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने तथा पवित्र बाइबिल पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे।
  • बाइबिल की मौलिक शिक्षाओं द्वारा ईश्वर संबंधी अवधारणा को स्पष्ट करना चाहते थे तथा पोप एवं पादरियों द्वारा ईश्वर संबंधित गलत अवधारणा से छुटकारा पाना चाहते थे। इन तीनों संप्रदायों का यह मानना था कि, मनुष्य अपने कार्यों के लिए सिर्फ ईश्वर के प्रति उत्तरदाई है ना कि चर्च एवं पोप के प्रति ।

मार्टिन लूथर (Martin Luther)

Martin Luther
Martin Luther
  • 16वीं सदी के आरंभ में जर्मनी में धर्म सुधार आंदोलन के प्रारंभ होने के लिए अनुकूल परिस्थितियों उत्पन्न हो चुकी थी। केवल एक बेहतर नेतृत्व की आवश्यकता थी, जो उसे एक सही दिशा दे सके। ऐसी ही परिस्थिति में मार्टिन लूथर का उदय हुआ।
  • मार्टिन लूथर (1483-1546) का जन्म जर्मनी के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने दर्शन के क्षेत्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। बाद में वे जर्मनी में विटेनबर्ग (Wittenberg) के चर्च में पादरी के पद पर नियुक्त हुए। इसी पद पर रहते हुए उन्होंने मध्य युगीन चर्च व्यवस्था की आलोचना की, रूढ़िवादी दर्शन पर आघात किया और संत ऑगस्टाइन के दर्शनों के अनुरूप विश्वास पर बोल दिया।
  • क्षमापत्रों की बिक्री का विरोध करते हुए मार्टिन लूथर ने विटेनबर्ग (Wittenberg) के चर्च के दीवार पर 95 थीसिस (Thesis) (Nov. 1517 AD) टाँग दिए। उसने न्यू टेस्टामेंट और आरंभिक ईसाई संतों की शिक्षा को अपने थिसिस का आधार बनाया।
  • लूथर ने अपने विचारों को जनसाधारण तक पहुंचाने के लिए जर्मन भाषा का उपयोग किया तथा बाइबिल का अनुवाद भी जर्मन भाषा में किया।

शोध पत्र की प्रमुख बातें –

शोध पत्र
शोध पत्र
  • जर्मन चर्च में स्थानीय भाषा जर्मन प्रयुक्त हो।
  • मठ व्यवस्था समाप्त हो।
  • राज्य को पादरियों के विवाद को निपटने का अधिकार हो।
  • चर्च की संपत्ति को राज्य वापस ले।
  • कर्मकांडों की संपत्ति हो।

ऑक्सबर्ग की संधि (Treaty of Augsburg)

  • लूथर के प्रभाव के परिणामस्वरुप 1555 ईस्वी में फर्डिनेंड द्वारा प्रोटेस्टेंट लोगों से समझौता हुआ। प्रत्येक शासन को अपनी प्रजा का धर्म चुनने का अधिकार दिया गया। लेकिन इस संधि की सीमा यह थी की, जनता को अपने शासक का निर्णय मानना था।
  • प्रोटेस्टेंट बनने पर कैथोलिक बिशपों को पद से हटा दिया गया।

प्रोटेस्टेंट धर्म उतरी जर्मन राज्यों, डेनमार्क, नॉर्वे, स्वीडन और बाल्टिक राज्यों में तेजी से फैल गया। जेनेवा प्रोटेस्टेंट आंदोलन का प्रमुख केंद्र था।

हल्ड्रिच ज्विंगली (Huldrych Zwingli)

  • जिस समय जर्मनी में लूथर का उदय हुआ, उसी समय स्विट्जरलैंड में ज्विंगली नामक सुधारक का अविर्भाव हुआ। प्रोटेस्टेंट आंदोलन का तीसरा गुट ज्युगलवादी (Zwinglianism) था ।
  • यह धार्मिक आंदोलन हल्ड्रिच ज्विंगली (Huldrych Zwingli) (1484-1531) के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ था। वह मूलत: जर्मन था, लेकिन उसने अपना कार्य क्षेत्र जॉन केल्विन की ही तरह ज्यरिख (Zurich) को बनाया तथा अपने धर्म सुधार संबंधी कार्य को संगठित किया।
  • ज्युगलवादी के धार्मिक सिद्धांत मार्टिन लूथर की तुलना में अधिक अतिवादी थे। धर्म के क्षेत्र में ज्विंगली ने उपवास का विरोध किया तथा पादरी के ब्रह्मचर्य और संतों की पूजा को गलत बताया। उसने बाइबिल की सर्वोच्च सत्ता पर बोल दिया। 1531 ईस्वी में गृह युद्ध के दौरान कैथोलिकों द्वारा ज्विंगली की हत्या कर दी गई।

जॉन केल्विन (John Calvin):

  • प्रोटेस्टेंट धर्म की स्थापना में लूथर के बाद जॉन केल्विन का नाम आता है। यदि धर्म सुधार आंदोलन प्रारंभ करने का श्रेय लूथर को दिया जाता है, तो केल्विन (Calvin) पहला सुधारक था, जो एक ऐसा पवित्र संप्रदाय स्थापित करना चाहता था जिसको अंतरराष्ट्रीय मान्यता और ख्याति प्राप्त हो।
  • जॉन केल्विन (John Calvin) का जन्म 1509 ईस्वी में फ्रांस में हुआ। उसके पिता एक वकील और नोयों के बिषप के सचिव थे। उसने पेरिस विश्वविद्यालय में धर्म और साहित्य का गहरा अध्ययन किया। लूथर के विचारों को पढ़कर 24 वर्ष की उम्र में उसने प्रोटेस्टेंट धर्म अपना लिया। उसने चर्च से संबंध समाप्त कर लिया। फ्रांस के रोमन कैथोलिक चर्च और फ्रांस की सरकार के क्रोध से बचने के लिए वह फ्रांस छोड़कर स्विट्जरलैंड चला गया।
  • केल्विनवादी आंदोलन का प्रचार प्रसार सबसे अधिक पश्चिमी यूरोप में हुआ। उसने ईसाई धर्म की संस्थाएँ (The Institute of the Christian Religion 1536) नामक पुस्तक की रचना की। यह धार्मिक पुस्तक बाद में प्रोटेस्टेंटवाद के इतिहास में सबसे प्रभावशाली ग्रंथ बन गई।
  • इसी पुस्तक के कारण वह टीकाकारों में सबसे अधिक बुद्धिमान, बाइबिल का सर्वाधिक कुशल भाष्यकार और सबसे समझदार एवं न्यायिक आलोचक माना जाता है।
  • केल्विन के सिद्धांतों का आधार ईश्वर की इच्छा की सर्वोच्चता है। उसका मानना था कि, ईश्वर की इच्छा से ही सब कुछ होता है, इसलिए मनुष्य की मुक्ति ना कर्म से हो सकती है, ना आस्था से।Protestant reformation

यूरोपीय देशों में धर्म सुधार आंदोलन की प्रगति:

जर्मनी (Germany)

  • वस्तुतः कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट (Protestanto) के मध्य सबसे भीषण धर्म युद्ध जर्मनी में हुआ। प्रोटेस्टेंट आंदोलन की शुरुआत जर्मनी से ही हुई। प्रतिक्रिया स्वरूप स्पेन (Spain) और फ्रांस (France) जैसे कैथोलिक देशों ने इस आंदोलन का दमन करने का प्रयास किया।
  • लेकिन जर्मन राज्यों ने फ्रांस के साथ मिलकर श्माल्काल्ड लीग (League of Schmalkald) की स्थापना की और स्पेन के सम्राट चार्ल्स पंचम के विरुद्ध युद्ध (1546) छेड़ दिया। 9 वर्षों तक चले इस खूनी गृह युद्ध के पश्चात अंतत: दोनों पक्षों के बीच ऑग्सबर्ग (Traty of Augsburg-1555 ई.) की संधि के द्वारा शांति स्थापित हो गई।
  • इसका विधिवत अंत वेस्टफेलिया की संधि (Treaty of Westphalia-1648) के द्वारा हुआ। इस युद्ध का जर्मनी में कोई निश्चित परिणाम नहीं निकला लेकिन दूसरी ओर इससे जर्मन राज्यों की समृद्धि अवश्य नष्ट हो गई। अनिश्चित परिणाम के बावजूद भी जर्मनी में मतावलंबियों का वर्चस्व बना रहा।
  • वेस्टफेलिया की संधि (Treaty of Westphalia-1648) की संधि के पश्चात यूरोप की राजनीति में फ्रांस का उत्थान हुआ। इसके परिणामस्वरुप फ्रांस 17वीं सदी में एक सक्षम एवं शक्तिशाली राज्य के रूप में उभरा।

स्विट्ज़रलैंड (Switzerland)

  • स्विट्ज़रलैंड में राष्ट्रीय चेतना का उदय हो चुका था। यहां प्रोटेस्टेंट संप्रदाय लोकप्रिय होता जा रहा था। दूसरी ओर यहाँ के अनेक नगरों में व्यापारिक और वाणिज्यिक गतिविधियां तीव्र हो चुकी थी। इसका सहज और स्वाभाविक परिणाम यह हुआ की, नवोदित पूंजीपति वर्ग की महत्वाकांक्षाएँ रोमन कैथोलिक चर्च के आदर्शों से टकराने लगी। यही वजह है कि, यहाँ भी प्रोटेस्टेंट आंदोलन लोकप्रिय होने लगा जो की केल्विन (Calvin) और ज्विंगली (Zwingli) के नेतृत्व में हुआ।

स्पेन (Spain)

  • प्रोटेस्टेंट आंदोलन को सबसे अधिक विरोध का सामना स्पेन में करना पड़ा। स्पेन के सम्राट कैथोलिक धर्म के कट्टर समर्थक थे और वह किसी भी स्थिति में इसकी सत्ता बनाए रखना चाहते थे। 16वीं सदी में स्पेन विश्व की सबसे बड़ी सैनिक शक्ति माना जाता था।

इंग्लैंड(England)

  • ब्रिटेन के सम्राट हेनरी 8th और एडवर्ड 6th ने प्रोटेस्टेंट आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया। हेनरी 8th (1509-1547) के निर्देश पर ब्रिटिश संसद ने सर्वोच्चता अधिनियम (Act of Supermacy) पारित किया, जिसके अनुसार इंग्लैंड के शासक को इंग्लैंड के चर्च का सर्वोच्च अधिकारी घोषित किया गया।
  • क्रैमर को कैंटरबरी का बिशप बनाया, जिसने कैथरीन के साथ हेनरी 8th के विवाह को गैरकानूनी घोषित कर दिया।
  • हेनरी 8th के उत्तराधिकारी एडवर्ड 6th (Edward 6th) (1547-1553)) के शासनकाल में आंग्ल चर्च प्रोटेस्टेंट बन गया। क्रैमर ने बुक ऑफ कॉमन प्रेयर (Book of common prayer-1549) नामक पुस्तक प्रकाशित करवायी और 42 सिद्धांतों की घोषणा की।
  • मैरी ट्यूडर की उत्तराधिकारी एलिजाबेथ प्रथम (Elizabeth-I) हुई, जो हेनरी 8th और एने- बोलिन (Anne Boleyn) की पुत्री थी। वह एक योग्य शासिका थी। उसे धर्म से उतना ही लगाव था जितना राजनीतिक हितों के लिए आवश्यक हो।
  • एलिजाबेथ प्रथम के शासनकाल में आंग्ला चर्च (Anglican Church) की स्वतंत्रता फिर से स्थापित हुई और क्रैमर की पुस्तक को संशोधित करके फिर से प्रकाशित किया गया। 42 सिद्धांतों को संशोधित करके उन्हें 39 सिद्धांतों के नाम से पुण: लागू किया गया।
  • आंग्ल चर्च को वैधानिक सत्ता प्रदान करने के लिए सर्वोच्चता और एकरूपता का कानून (Act of Supermacy and Uniformity) पास किया गया।

फ्रांस (France)

  • इस आंदोलन की लोकप्रियता फ्रांस में भी फैलने लगी जो फ्रांस में ह्यूजन (Huguen) के नाम से जाने जाते थे और यह फ्रांसीसी केल्विनवादी 1559 ईस्वी में फ्रांस की कुल जनसंख्या का 10 प्रतिशत थे।
  • कैथरीन- द- मेडिसि (Catherine-de-Medicis) के शासनकाल में प्रोटेस्टेंट आंदोलन को आगे आने का मौका मिला लेकिन उसके विरोधी बहुत संख्या में थे। परिणामत: एक खूनी संघर्ष हुआ जिसमें 1572 ई. में बड़ी संख्या में प्रोटेस्टेंट की हत्या हुई।

संयुक्त राज्य अमेरिका (USA)

  • प्यूरिटन (Uritan) के समर्थक एंग्लिकन चर्च (इंग्लिश चर्च) व्यवस्था से संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि इसमें मध्यम मार्ग अपनाया गया था।
  • यूरोप के इन प्रवासियों ने उत्तरी अमेरिका में जाकर अपना उपनिवेश स्थापित किया जिसके कारण आगे चलकर एक नए राष्ट्र का जन्म हुआ।अमेरिका में भी जो लोग प्यूरिटन धर्म नहीं मानते थे उनका दमन कर दिया जाता था।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका की स्थापना में केल्विनवादियों का महत्वपूर्ण योगदान था। आधुनिक अमेरिका में पाए जाने वाले कांग्रेगसेनलिस्ट (Congregatoinalist),  भी प्रेस्बीटेरियन (Presbytarian), और बैपटिस्ट (Baptist) केल्विनवादी ही हैं।
  • यूरोप का कोई भी प्रमुख राष्ट्र ऐसा नहीं था, जो इस सुधार आंदोलन के प्रभाव में ना आया हो। यह बात अलग है कि कहीं प्रोटेस्टेंटवाद का बोलबाला रहा तो कहीं कैथोलिकों का तो कहीं मध्यम मार्ग अपनाया गया। लगभग 250 वर्षो तक इन दोनों पक्षों के मध्य संघर्ष चलता रहा, जिसमें लगभग 100 वर्षों तक तो सैन्य संघर्ष भी चला। अंतत: 250 वर्षों के बाद यूरोप में धार्मिक क्षेत्र में सहीष्णुता की भावना का विकास हुआ और धर्म के नाम पर युद्ध समाप्त हो गया।

धर्म सुधार की सफलता:

  • मार्टिन लूथर, ज्विंगली और केल्विन के प्रयत्नों से यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन प्रारंभ हुआ तथा कई देशों में सुधारकों के सिद्धांतों के अनुसार चर्च के संगठनों में परिवर्तन किए गए।
  • फ्रांस और स्पेन को छोड़कर यूरोप के अधिकांश देशों में प्रोटेस्टेंट धर्म मजबूत होने लगा। इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और उत्तरी जर्मनी के राज्यों ने पोप का विरोध किया। इन देशों में प्रोटेस्टेंट धर्म के प्रचार में ब्रिटेन के शासक हेनरी 8th का योगदान उल्लेखनीय रहा।

प्रतिवादी धर्म सुधार आंदोलन:

  • 16वीं शताब्दी के धर्म सुधार आंदोलन तथा प्रोटेस्टेंटें की सफलता ने यह स्पष्ट कर दिया कि, अपने स्थायित्व के लिए रोमन कैथोलिक चर्च में भी सुधार आवश्यक है।
  • आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य चर्च के संगठन एवं कार्य विधि से संबंधित सिद्धांतों में परिवर्तन लाना, धर्म सिद्धांतों की व्याख्या और धर्म प्रचार का कार्य करना था।
  • इतिहासकार श्वेट भी मानते हैं कि, रोमन कैथोलिकों में सुधार की प्रेरणा प्रोटेस्टेंट क्रांति के महत्वपूर्ण परिणाम में से एक थी।

ट्रेन्ट काउंसिल (Trent Council):

  • इटली के ट्रेन्ट (Trent) नामक स्थान पर 1545 ई. में चर्च की एक परिषद बुलाई गई। इसमें अग्रलिखित महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए-
  • भविष्य में चर्च का कोई पद किसी को नहीं बेचा जाएगा।
  • क्षमापत्रों की बिक्री रोक दी गई और संस्कार संबंधी कार्यों के लिए पादरियों के आर्थिक लाभ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इन निर्णयों को लागू करने के लिए इन्क्वीजिशन (धार्मिक न्यायालय) को मान्यता दी गई।

इन्क्वीजिशन (धार्मिक न्यायालय):

  • प्रोटेस्टेंट धर्म की प्रगति को अवरोध करने के लिए जो संस्था सबसे शक्तिशाली एवं प्रभावपूर्ण सिद्ध हुई, वह इन्क्वीजिशन (धार्मिक न्यायालय) थी। यह एक विशेष धार्मिक अदालत थी।

सोसाइटी ऑफ जीसस (Society of Jesus)

  • कैथोलिक चर्च को नया जीवन प्रदान करने वालों में इग्नेशियस लोयोला (1491-1556) का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है। स्पेन निवासी लोयोला (Loyola) एक बहादुर सैनिक था।
  • चर्च को फिर से संगठित करने के लिए उसने सोसाइटी ऑफ जीसस (Society of Jesus)  की स्थापना की। जिसके सदस्य जेसुइट कहलाने लगे।

जेसुइट संघ (Jesuit Union)

  • धर्म सुधार आंदोलन के परिणामस्वरुप रोमन – चर्च व्यवस्था में आंतरिक सुधार की प्रक्रिया तीव्र हुई। इस व्यवस्था के समर्थकों को ऐसा लगा कि, यदि आंतरिक सुधार नहीं किए जाएँगे तो प्रोटेस्टेंट आंदोलन और मजबूत होता चला जाएगा।
  • कैथोलिक चर्च को जीवन प्रदान करने वालों में इग्निशयस ऑफ लोयोला (Ignatius Loyola) का स्थान महत्वपूर्ण है।
  • लोयोला (Loyola) ने 1534 ईस्वी में जेसुइट संघ की स्थापना की। जेसुइट लोगों का सबसे महत्वपूर्ण कार्य विदेश में धर्म प्रचार करना था।

    Protestant reformation
    Protestant reformation

 धर्म सुधार आंदोलन के परिणाम :

  • धर्म सुधार आंदोलन में राष्ट्रीय साहित्य एवं क्षेत्रीय भाषाओं का पर्याप्त विकास हुआ। लूथर ने बाइबिल का जर्मन भाषा में तथा केल्विन ने फ्रेंच में अनुवाद किया, जो अत्यधिक लोकप्रिय हुआ। स्वाभाविक रूप से इससे अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश आदि भाषाओं के विकास का मार्ग भी प्रशस्त हुआ।
  • इस आंदोलन के परिणाम स्वरुप यूरोप में मानवतावाद एवं व्यक्तिवाद की अवधारणा पर अधिक बल दिया गया।
  • सुधारवादियों तथा कैथोलिक धर्म अनुयायियों, दोनों ने ही शिक्षा के प्रसार पर जोर दिया। इस संबंध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य जीसस समाज ने किया।
  • 16वीं शताब्दी में धर्म के नाम पर प्रोटेस्टेंटों तथा कैथोलिकों दोनों ने ही भयावह रक्तपात किया। धार्मिक युद्ध की शुरुआत हॉलैंड में हुई, किंतु 30 वर्षीय धार्मिक युद्ध (1618-1648) में धर्मांधता और घृणा की विनाशकारी प्रवृत्तियां शिखर पर पहुंच गई।
  • धर्म के इस स्वरूप ने लोगों में विरक्ति (धर्म से) की भावना उत्पन्न की। फलत: कालांतर में यूरोप में भौतिकवाद का अत्यधिक विकास हुआ और सहीष्णुता की भावना पनपी।
  • धार्मिक आंदोलनों ने राष्ट्रीय भावना को प्रेरित किया और राष्ट्रीय चर्च की अवधारणा पर बोल दिया। चर्च के नाम पर इटली को धन दिए जाने पर लूथर जैसे सुधारवादियों ने प्रतिबंध लगाने की माँग की।
  • प्रोटेस्टेंटवादियों ने अधिकांश धार्मिक प्रतीकों (मूर्ति, चित्र आदि) को अस्विकार करके उनको ध्वस्त कर दिया, जिससे ललित कला (मानव निर्मित कलाएँ) को नुकसान पहुंचा।
  • इस प्रकार धर्म सुधार आंदोलन के विविध दुरगामी परिणाम हुए। इससे यूरोप में नए युग की चेतना का विकास हुआ।

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