फिलिस्तीन(Palestine) से संबद्ध मुद्दे:
- नवंबर 1947 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने यूनाइटेड नेशन रेजल्यूशन 181 के माध्यम से फिलीस्तीन(Palestine) को यहूदी तथा अरब स्टेटस में विभाजित किया। इस रेजल्यूशन के तहत येरूसलम को अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण में रखा गया।
- अंततः 14 मई 1948 को इजराइल का निर्माण हुआ। इसके कारण अरब राष्ट्रों के साथ 8 महीने तक युद्ध चला ।
- युद्ध के परिणामस्वरुप वेस्ट बैंक का सृजन हुआ, जिसके साथ–साथ पूर्वी येरुशलेम को जॉर्डन में तथा गाजा पट्टी को मिस्र में मिलाया गया। युद्ध के उपरांत इजराइल ने रेजल्यूशन 181 में अभिकिल्पत क्षेत्र की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
- इस प्रकार प्रथम अरब इजरायल युद्ध के परिणामस्वरुप फिलिस्तीनी(Palestine) जनता राष्ट्रहीन हो गई, जिनमें से बहुत से लोग पड़ोसी अरब राष्ट्रों में शरणार्थी बन गए।
- फिलीस्तीन मुक्ति संगठन (Palestine Liberation Organisation: PLO) का गठन 1964 में संपूर्ण ऐतिहासिक फिलिस्तीन(Palestine) को मुक्त करने के उद्देश्य किया गया था ।
- इजराइल तथा उसके अरब पड़ोसियों के मध्य जून 1967 के युद्ध में इजरायल ने मिस्र, जॉर्डन व सीरिया को हरा दिया तथा पूर्वीयरुशलम, वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी एवं गोलन हाइट्स पर कब्जा कर लिया। यह युद्ध फिलिस्तीनियों को इजरायली अधिग्रहण केतहत ले आया।
- इजरायली शासन के विरुद्ध पहला इंतिफादा (The first Intifada), या फिलिस्तीन विद्रोह, 1987 से 1993 तक चला।
- 1993 में, इसराइल तथा PLO ने ओस्लो में 6 माह के गुप्त समझौता – वार्ता के पश्चात फिलिस्तीनी स्वयत्तता के सिद्धांतों केएक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये जिसने एक असफल शांति प्रक्रिया को आरंभ किया।
- PLO के नेता यासर अराफात जुलाई 1994 में फिलीस्तीनी राष्ट्रीय प्राधिकरण (Palestinian National Authority: PNA or PA) का गठन करने के लिए गाजा लौट आए। स्व-शासन को सर्वप्रथम गाजा पट्टी तथा वेस्ट बैंक के जेरिको शहर मेंस्थापित किया गया।
- 1999 से 2000 में ओस्लो शांति प्रक्रिया भंग हो गई। इसके पश्चात एक हिंसक द्वितीय इंतिफादा (फिलिस्तीनि विद्रोह) घठितहुआ तथा इजरायली ने इसके प्रतिक्रिया व्यक्त की।
- अराफात की मृत्यु के पश्चात जनवरी 2005 में मोहम्मद अब्बास ने फिलीस्तीनी सत्ता के नेतृत्व को संभाला।
- इजरायली बलों ने सितंबर 2005 में 38 वर्ष के अधिग्रहण के पश्चात गाजा को छोड़ा।
- जून 2007 में, हमास (एक इस्लामी संगठन) में अब्बास के नेतृत्व वाले फतह गुट के अपने प्रतिद्वंदियों के साथ भीषण युद्ध केपश्चात गाजा पट्टी पर नियंत्रण स्थापित कर लिया । हमास एक फिलीस्तीनी इस्लामी राजनीतिक संगठन एवं आतंकवादीसमूह है जिसने 1987 में समूह की स्थापना के बाद से, इजरायल से युद्ध किया, विशेष रूप से आत्मघाती बमबारी तथा रॉकेटहमले के माध्यम से। जो कि अभी भी जारी है जिसे हम पिछले 3 महीने से देख रहे हैं ।
- यह इजराइल को फिलीस्तीन(Palestine) राष्ट्र के साथ बदलना चाहता है। यह फिलिस्तीनी सत्ता से स्वतंत्र होकर गाजा परशासन करता है।
- 2014 में, इजरायल ने रॉकेट फायर को रोकने तथा फिलिस्तीनी क्षेत्र से सुरंग को नष्ट करने के प्रयास में गाजा के विरुद्ध एकनया अभियान आरंभ किया।
- हमास तथा फतह ने विवाद के एक दशक को समाप्त करने के उद्देश्य 2017 में एक सुलह समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- इस प्रकार फिलिस्तीन(Palestine) लोग राष्ट्रविहीन हो गए तथा वे क्षेत्र (अर्थात वेस्ट बैंक एवं गाजा पट्टी) जिनसेफिलिस्तीन(Palestine) के भावी राष्ट्र बनने की अपेक्षा की जाती थी, वे विभाजित हो गये।
- भारत सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय, इजरायल के लिए सुरक्षा तथा मान्यता के साथ, फिलिस्तीन मुद्दे पर शांतिपूर्ण वार्ता केमाध्यम से समाधान का समर्थन करता है।
भारत फिलिस्तीन संबंध में भारत की स्थिति:
- फिलिस्तीन(Palestine) लोगों के साथ भारत की एकजुट तथा फिलिस्तीन मसले के प्रति इसके दृष्टिकोण को महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए हमारे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बल प्रदान किया गया था। तब से फिलिस्तीन विषयों के लिए सहानुभूति तथा फिलिस्तीन के लोगों के साथ मित्रता, भारत के विदेश नीति का एक अभिन्न अंग बन गई है।
- भारत प्रथम गैर – अरब राष्ट्र था जिसने 1974 में PLO को फिलिस्तीनी लोगों के एकमात्र एवं वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी थी। भारत, 1988 में फिलीस्तीन राष्ट्र को मान्यता देने वाले, आरंभिक देशों में से एक था।
- 1996 में, भारत ने गाजा में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला, जिसे बाद में 2003 में रामल्ला में स्थानांतरित कर दिया गया था।
- फिलिस्तीनी पक्ष के समर्थन में भारत ने सदा सक्रिय भूमिका निभाई है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 53वें सत्र के दौरान, फिलिस्तीनियों के स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रारूप प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया तथा इसके पक्ष में मतदान किया।
- भारत ने अक्टूबर 2003 में इजरायल द्वारा पृथक दीवार के निर्माण के विरुद्ध, संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के पक्ष में भी मतदान किया था तथा इस संदर्भ में UNGA के आगामी प्रस्तावों का समर्थन किया। भारत ने 2011 में फिलीस्तीन (Palestine)को यूनेस्को के पूर्ण सदस्य के रूप में स्वीकार करने के पक्ष में मतदान किया।
- 29 नवंबर 2012 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन (Palestine) की स्थिति को बढ़ाकर गैर- सदस्य राष्ट्र(non-member state) की श्रेणी में कर दिया गया था। भारत में इस प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया तथा इसके पक्ष में मतदान किया।
- भारत ने अप्रैल 2015 में आयोजित एशियाई अफ्रीकी अभ्यावेदन सम्मेलन(Asian African Commemorative Conference) में फिलीस्तीन के बारे में बांडुंग घोषणा पत्र का समर्थन किया। भारत ने सितंबर 2015 में अन्य प्रेक्षक राष्ट्रों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र परिसर में, सदस्य राष्ट्रों के ध्वजों की भांति फिलिस्तीनी ध्वज के अधिष्ठापन का समर्थन किया।
भारत फिलीस्तीन(Palestine) संबंध में वित्तीय सहायता :
- भारत में अब तक फिलीस्तीन को 60 मिलियन अमेरिकी डॉलर का बजटीय एवं परियोजना समर्थन दिया है। वर्ष 2008 में राष्ट्रपति अब्बास की भारत यात्रा के दौरान, भारत ने बजट के समर्थन के रूप में 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान की घोषणा की तथा इस मार्च 2009 में फिलीस्तीन को हस्तांतरित कर दिया गया था।
- फरवरी 2010 में राष्ट्रपति अब्बास की भारत यात्रा के दौरान, भारत ने 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बजट के समर्थन की घोषणा की तथा इस मार्च 2010 में फिलीस्तीन को स्थानांतरित कर दिया गया था।
- 2012 में, राष्ट्रपति अब्बास की यात्रा के दौरान, भारत ने फिलीस्तीन को बजटीय समर्थन के रूप में 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान की घोषणा की।
- वर्ष 2015 के दौरान, भारत में फिलीस्तीन को कुल 9 मिलियन अमेरिकी डॉलर वित्तीय सहायता के रूप में प्रदान किया। गाजा के पुनर्निर्माण (12 जनवरी 2015 को) के लिए परियोजना सहायता के रूप में 4 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान किए गए थे तथा 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर बजटीय सहायता के रूप में प्रदान किए गए थे।
- 2018 में प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान भारत ने फिलिस्तीन की सहायता के रूप में कुल 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा की।
- 30 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत वाले, बेथलेहम के बेत सहौर (Beit Sahour) में भारत फिलिस्तीन सुपर स्पेशलिस्ट अस्पताल की स्थापना के लिए, भारत तथा फिलिस्तीन के मध्य एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
- महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से भारत फिलिस्तीन केंद्र, साथी (Turathi) का निर्माण।
- भारत ने फिलीस्तीन के लिए 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से रामल्ला में नई राष्ट्रीय प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना के लिए वित्त निर्धारित किया।
हालिया घटनाक्रम तथा भविष्य: डी-हाइफनेशन (Recent development and the Future: De-Hyphenation)
- प्रधानमंत्री ने अपनी 2018 की यात्रा के दौरान कहा कि भारत उम्मीद करता है कि फिलीस्तीन, शांतिपूर्ण वातावरण में शीघ्र ही एक संप्रभु एवं स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा। फिलिस्तीन विवाद का स्थायी समाधान मूलभूत रूप से समझौता- वार्ता तथा सहमति में निहित है जिसके माध्यम से शांतिपूर्ण सह- अस्तित्व के मार्ग को प्राप्त किया जा सकता है।
- विदेश मंत्रालय के हालिया बयान के अनुसार, फिलिस्तीन पर भारत की स्थिति स्वतंत्रता एवं सुसंगत है। यह हमारे विचारों तथा हितों के अनुरूप बनाया गया है तथा किसी भी तीसरे देश द्वारा निर्धारित नहीं है। भारत में परंपरागत रूप से, दो – राष्ट्र समाधान के अंश के रूप में, एक स्वतंत्र फिलीस्तीन के समर्थन किया है।
- यरूशलम विवाद पर संयुक्त राष्ट्र में हाल ही में भारत द्वारा किया गया मतदान, इस मामले पर भारत के चिरकालीन विचारों के अनुरूप भी है।
- प्रधानमंत्री मोदी की फिलिस्तीन की 2018 की यात्रा, 2014 में इजरायल की यात्रा की भांति एक एकल यात्रा थी। इस डी-हाइफेनेशन प्रक्रिया के निवृत्ति के रूप में देखा गया था।
दो राष्ट्र समाधान (Two-State Solution):
- दो राष्ट्र समाधान, का फार्मूला वस्तुत: एक स्वतंत्र इजराइल एवं फिलिस्तीन का निर्माण करेगा, यह संघर्ष का समाधान करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक स्वीकार्य दृष्टिकोण है। मूल विचार यह है कि इजराइल तथा फिलिस्तीन अपने राष्ट्रों को अलग-अलग तरीके से चलाना चाहते हैं, इजराइलियों को एक यहूदी राष्ट्र चाहिए तथा फिलिस्तीनियों को एक फिलीस्तीन राष्ट्र चाहिए।
- कोई भी पक्ष, एक संयुक्त राष्ट्र में वह सब प्राप्त नहीं कर सकता जो वह चाहता है, तो ऐसी स्थिति में केवल एकमात्र संभावित समाधान जो हर किसी को संतुष्ट करता है, वह है फिलिस्तीन तथा इजराइल का गठन।
- अधिकांश वोटिंग से यह पता चलता है कि इजराइल तथा फिलिस्तीन दोनों ही उपयुक्त वर्णित दो राष्ट्र समाधान को पसंद करते हैं। हालांकि, इजराइलियों तथा फिलिस्तीनियों की दो राष्ट्र की शब्दावली पर खरे उतरने की अक्षमता ने, हाल ही में एक – राष्ट्र समाधान के रुचि में वृद्धि की है। यह रुझान आंशिक रूप से निराशा की भावना के कारण तथा आंशिक रूप से डर के कारण है।
- यदि दोनों पक्ष दो – राष्ट्र समाधान पर समझौता नहीं कर पाए तो वस्तुतः एक राष्ट्र परिणाम अपरिहार्य होगा।
- एक राष्ट्र समाधान वस्तुत: इजराइल, वेस्ट बैंक गाजा पट्टी को एक बड़े राष्ट्र में विलय कर देगा। यह दो संस्करणों में हो सकता है। कुछ वामपंथियों तथा फिलिस्तीनियों द्वारा समर्थित, पहले संस्करण के अनुसार, एक पृथक लोकतांत्रिक देश का निर्माण होगा। अरब मुसलमान, संख्या में यहूदियों से अधिक होंगे। इस प्रकार एक यहूदी राष्ट्र के रूप में इजरायल के संकल्पना समाप्त हो जाएगी।
- कुछ दक्षिणपंथियों तथा इजराइलियों द्वारा समर्थित, दूसरे संस्करण में, इजरायल द्वारा वेस्ट बैंक पर कब्जा करना तथा इसके साथ-साथ या तो फिलिस्तीनियों को बाहर निकलना या उन्हें वोट देने के अधिकार से वंचित करना सम्मिलित होगा। वास्तव में, अधिकतर यहूदियों (ज़्योनिस्टों) सहित पूरी दुनिया, इस विकल्प को अस्वीकार्य एवं मानवाधिकार का उल्लंघन करने वाला विकल्प मानते हुए अस्वीकार करती है।
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