कृषक उत्पादक संगठन (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION)महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।कृषक उत्पादक संगठनों के महत्व को देखते हुए सरकार अनुकूल नीति निर्माण के माध्यम से उनके सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रही हैइन संगठनों की भूमिका किसानों कि आय को दोगुना करने में भी सहायक मानी जा रही है ।
मौजूदा समय में ये कृषक उत्पादक संगठन भारतीय कृषि एवं ग्रामीण विकास के वाहक के रूप में उभर रहे हैंइन संगठनों द्वारा प्रारंभ की गई विभिन्न पहलू को सतत कृषि की ओर संक्रमण की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है | हाल ही में, केंद्रीय कृषि मंत्री द्वारा प्रधान की गई जानकारी के अनुसार वर्तमान में देश में कुल 4748 कृषक उत्पादक संगठन (Farmer Producer Organization) पंजीकृत है। इसके साथ ही इसे संबंध किसानों को क्रेडिट गारंटी सुविधा और इक्विटी अनुदान भी प्रदान किया जा रहे हैं। हम भारत में कृषि उत्पादक संगठन को निम्न प्रकार से समझ सकते हैं।
- किसान उत्पादक संगठन (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) एक प्रकार का उत्पादक संगठन है, जिसके सभी सदस्य किसान होते हैं। इन्हें किसान उत्पादक कंपनियों Farmers Producer Companies-(FPC) के रूप में भी जाना जाता है। यह संगठन प्राथमिक उत्पादकों यानी कृषकों द्वारा बनाई गई एक कानूनी इकाई होते हैं। FPO (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) आगतों की खरीद से लेकर बाजार संपर्क तक विभिन्न चरणों में किसानों की सहायता करते हैं। उनके द्वारा अपने सदस्य किसानों को उनकी कृषि उपज के प्रसंस्करण के साथ-साथ विपणन की सुविधा प्रदान की जाती है।
- भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के तहत कृषि एवं सहकारिता विभाग तथा कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत किसान उत्पादक संगठनों को मान्यता दी जाती है। एफपीओ को किसानों को सशक्त एवं संगठित करने वाले संगठन के रूप में मान्यता दी गई है
- भारतीय कृषि में लगभग 80% से 85% जोत लघु एवं सीमांत किसानों के हैं। व्यापक संख्या में खंडित जोतें (Fragmented Holdings) भारतीय कृषि की विशेषता है। अत्यधिक असंगठित होने के कारण किसान अपनी कृषि उपज का अच्छा मूल्य प्राप्त करने में सक्षम नहीं है। किसनों की इन समस्याओं का समाधान किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से उनके व्यवसाय को व्यवस्थित करके किया जा सकता है।
भारत में एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) की वर्तमान स्थिति :
- भारत में कई शोधकर्ताओं द्वारा एफपीओ पर विभिन्न अध्ययन किए गए हैं, जिन्होंने भारत में एफपीओ की कुल संख्या के बारे में अलग-अलग अनुमान दिए हैं। चुकी एफपीओ को विभिन्न एजेंसियों द्वारा बढ़ावा दिया जाता है, इसलिए देश में सभी मौजूदा पंजीकृत एफपीओ के बारे में जानकारी का कोई आंख एकीकृत स्रोत नहीं है।
- भारत ज्यादातर, कंपनी अधिनियम तथा सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं। इसके अलावा देश के कुछ एफपीओ धारा 8 की कंपनी या ट्रस्ट के रूप में पारस्परिक सहायता प्राप्त सहकारी समिति के रूप में भी पंजीकृत हैं।
- यदि कोई एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) धारा 8 कंपनी के रूप में पंजीकृत है तो वह अपने अर्जित आय को अपने सदस्यों के बीच वितरित करने के लिए बाध्य नहीं है। इसलिए अधिकांश एफपीओ या तो कंपनी अधिनियम या सरकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत होते हैं।
एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) की भूमिका एवं महत्व :
• किसानों को सशक्त बनाना– एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) किसानों को सामूहिक रूप से सशक्त करके सौदेबाजी की शक्ति प्रदान करते हैं।इसके माध्यम से लघु एवं सीमांत किसानों की भी उन संसाधनों, बाजारों और सेवाओं तक पहुंच संभव हो पाती हैं, जिन तथा पहुंच प्राप्त करना उनके लिए मुश्किल होता है।
• बाजार पहुंच और उचित मूल्य प्राप्ति– एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) किसानों से उपज एकत्र करने का कार्य करते हैं।साथ ही इन एकत्र किए गए उत्पादों को बाजार तथा पहुंचाने में सहायता करते हैं, जिससे बिचौलियों की भूमिका महत्वहीन हो जाती है। इससे किसानों को उनकी उपज था उचित मूल्य प्राप्त हो पाता है।
• मूल्य संवर्धन एवं प्रसंस्करण– एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) कृषि उपज के मूल्य संवर्धन और प्रसंस्करण को बढ़ावा देते हैं, जिससे किसान इस मूल्य श्रृंखला (Value chain) का हिस्सा बन पाते हैं। मूल्यवर्धित उत्पादों की कीमत अधिक होती है, जिससे किसानों के लिए लाभप्रदता बढ़ती है।
• वित्त और इनपुट तक पहुंच– एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) किसान की ऋण जैसी वित्तय सेवाओं तक पहुंच की सुविधा प्रदान करते हैं। यह अपने सदस्यों को थोक दरों पर आगतों थी खरीद में मदद करते हैं, जिससे लागत कम करने में सहायता मिलती है।
• ज्ञान और कौशल विकास– एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) किसानों को ज्ञान और कौशल को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण शास्त्र और कार्यशालाएं आयोजित करते हैं। इसमें आधुनिक कृषि पद्धतियां, व्यवसाय प्रबंधन आदि को बढ़ावा देने की गतिविधियां शामिल हैं।
• सतत कृषि– एफपीओ,(FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) जैविक कृषि, जल संरक्षण, टिकाऊ कृषि पद्धतियों सहित पर्यावरण-अनुकूल दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हैं, जिससे पर्यावरण संरक्षण और दीर्घकालिक व्यवहार्यता को बढ़ावा मिलता है।
• ग्रामीण विकास– एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION), किसानों और ग्रामीण समुदाय के बीच आय सृजन, रोजगार के अवसर और उधमशीलता को बढ़ावा देकर समग्र ग्रामीण विकास में योगदान करते हैं। उनके द्वारा किसानों के हितों को बढ़ावा देने वाले नीतियों की वकालत की जाती है।
• सामाजिक प्रभाव– एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) के रूप में एक सामाजिक पूंजी का विकास होगा, क्योंकि इससे एफपीओ में लैंगिक भेदभाव को दूर करने और संगठन के निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिला किसानों की भागीदारी में सुधार हो सकता है। यह सामाजिक संघर्षों को कम करने के साथ ही समुदाय में बेहतर भोजन एवं पोषण को बढ़ाने में सहायता कर सकता है।
एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) के द्वारा सामना की जा रही चुनौतीयां :
• बिजनेस मॉडल के बारे में समझ की कमी– एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) को किसानों द्वारा गठित एक व्यावसायिक इकाई माना जाता है। उत्पादन पूर्व योजना से लेकर उपज के विपणन तक के संपूर्ण निर्णय किसानों को स्वयं करने होते हैं।
भारत में किसानों को कृषि तथा पशुपालन से संबंधित विभिन्न कार्यों का समृद्ध अनुभव होता है, परंतु तेजी से बदलते कृषि बाजार में जोखिम प्रबंधन के लिए उपज के विपणन से संबंधित कई मुद्दे हैं। इसमें सबसे प्रमुख वास्तविक समय(Real Time) में मौसम, कृषि उपज आदि के विषय में जानकारी तक कम पहुंच का होना है।
• पूंजी तक पहुंच सम्बंधित समस्याएं– एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) का प्रतिनिधित्व अधिकतर छोटे और सीमांत किसानों द्वारा किया जाता है जिनके पास खराब संसाधन आधार होता है और इसलिए शुरू में वह अपने सदस्य को जीवंत उत्पाद और सेवाएं देने एवं आत्मविश्वास बनाने के लिए वित्तीय रूप से मजबूत नहीं होते हैं। क्रेडिट इतिहास की कमी के कारण किफायती ऋण तक पहुंच में कमी वर्तमान एफपीओ द्वारा सामना की जाने वाली प्रमुख बाधाओं में से एक है।
• प्रबंधकीय क्षमता– किसी भी अन्य व्यवसाय की तरह एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) को भी अपने व्यवसाय संचालन के लिए तकनीकी और प्रबंधकीय विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है। देश के किसानों में शिक्षा का स्तर निम्न है तथा आधुनिक तकनीक के संबंध में जानकारी की कमी है। देश के अधिकांश एफपीओ की वित्तीय क्षमता निम्न है तथा कृषकों के बीच जागरूकता की कमी के कारण इनके द्वारा पेशेवरों को काम पर रखने की उपेक्षा की जाती है।
• स्वामित्व और नियंत्रण– कई एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) का गठन कुछ प्रगतिशील किसानों या ग्रामीण परिवारों द्वारा किया गया है। हालांकि ऐसे व्यक्तियों के लिए व्यक्तिगत हित और किसान सदस्यों के हित के बीच संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।वे एफपीओ के भीतर लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित व्यक्ति को प्रबंधन का प्रभार सौंपने में भी संकोच करते हैं। इससे हितों का संघर्ष पैदा होता है जो एफपीओ के खराब प्रशासन संरचना को जन्म देता है।
• व्यवसाय योजना और विस्तार के अवसर– किसी भी व्यावसायिक संगठन को अपनी सफलता सुनिश्चित करने के लिए एक अच्छी व्यवसाय योजना का निर्माण करना चाहिए। वर्तमान में अधिकांश एफपीओ के पास ऐसी व्यवसाय योजना का अभाव है इनके द्वारा अपनी गतिविधि को केवल इनपुट और कृषि उपज की थोक खरीद तथा बिक्री तक ही सीमित कर लिया गया है।
एफपीओ को बढ़ावा देने से संबंधित सरकार की पहलें:
• एफपीओ था गठन और संवर्धन– सरकार द्वारा एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) के गठन और पंजीकरण को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। इन पदों के द्वारा किसानों को वित्तीय सहायता और तकनीकी सहायता प्रदान की जा रही है जिससे कि किसान सामूहिक रूप से संगठित हो सकें।
• किसान उत्पादन संगठन विकास योजना(FPODS)– यह एक केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजना है, जो एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) के विकास में सहायता के लिए शुरू की गई थी। इसके तहत एफपीओ के क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण, बाजार जुड़ाव और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना के तहत प्रत्येक एफपीओ को 33 लख रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
• नबार्ड का एफपीओ प्रमोशन फंड– नाबार्ड ने एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) के प्रचार और विकास का समर्थन करने के लिए एक समर्पित फंड स्थापित किया है। यह फंड एफपीओ को क्षमता निर्माण, प्रौधोगिकी उन्नयन, बाजार संपर्क सहित विभिन्न गतिविधियों के लिए वित्तीय सहायता और अनुदान प्रदान करता है।
• राष्ट्रीय कृषि विकास योजना(RKVY)– राष्ट्रीय कृषि विकास योजना एक सरकारी योजना है जिसका उद्देश्य कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना है। इस योजना के तहत कृषि व्यवसाय उद्यम स्थापित करने, मूल्य संवर्धन और बाजार बुनियादी ढांचे के विकास सहित विभिन्न गतिविधियों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
• लघु कृषक कृषि व्यवसाय संघ– यह सरकार द्वारा परिवर्तित एक सोसायटी है जो संपूर्ण देश में एफपीओ के विकास से संबंध है। यह एफपीओ को वित्तीय सहायता, क्षमता निर्माण और बाजार संपर्क प्रदान करती है।
• बाजार लिंकेज पहल– एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) हेतु बाजार पहुंच में सुधार करने के लिए, सरकार ने ई – नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) और अन्य ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म सहित विभिन्न पहले शुरू की हैं। यह प्लेटफॉर्म एफपीओ को खरीदारों तक पहुंचने, उनकी उपज के लिए बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद करते हैं।
क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण(Cluster Based Approach)- सरकार ने एफपीओ को बढ़ावा देने के लिए क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण भी अपनाया है। इस दृष्टिकोण के तहत एफपीओ के समूहों का गठन किया जाता है, ताकि किसी गतिविधियों को आर्थिक रूप से अधिक व्यवहार बनाया जा सके। क्लस्टर आधारित व्यावसायिक संगठनों को प्रति एफपीओ 25 लख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
भविष्य की राह :
• राष्ट्रीय एफपीओ बोर्ड की स्थापना- सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम तथा विभिन्न कमोडिटी बोर्डों की तर्ज पर एफपीओ को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय बोर्ड बनाने की आवश्यकता है।इस संस्था के माध्यम से सभी एफपीओ की प्रगति की निगरानी की जा सकेगी हैं।देश में एफपीओ से सम्बंधित राष्ट्रीय डेटाबेस को विकसित किया जा सकता है, जो इनसे संबंधित निर्णय लेने में सहायक होगा।
• अनुदान के रूप में न्यूनतम सुनिश्चित निधि सहायता- कई एफपीओ दूरदराज के इलाकों में स्थित हैं और उन्हें भौगोलिक स्थिति या अन्य कारणों के चलते नाबार्ड इत्यादि जैसी किसी भी प्रचार एजेंसी से समर्थन नहीं मिलता है। इसलिए सभी पंजीकृत एफपीओ के लिए पूर्व निामानदंडों (जैसे किसान सदस्यों की संख्या, बोर्ड में विविधता, अगले 3 वर्षों की व्यवसाय योजना आदि) के आधार पर एकमुश्त अनुदान के रूप में न्यूनतम निधि प्रदान किया जाना चाहिए।
• एफपीओ के लिए कार्यशील पूंजी का प्रावधान- प्रारंभिक चरण में सभी एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) को व्यवसाय संचालित करने के लिए कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है। इन एफपीओ को सस्ती दर पर संस्थागत ऋण प्राप्त करने में चुनौती का सामना करना पड़ता है। इसलिए सरकार द्वारा इस प्रकार के प्रावधान किए जाने चाहिए कि एफपीओ को रियायती दर पर अल्पकालिक ऋण आसानी से मिल सके।
• एफपीओ को कृषि विज्ञान केंद्रों और कृषि विश्वविद्यालयों से जोड़ना- एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) को किसी कृषि विश्वविद्यालय / कृषि विज्ञान केंद्रों / भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(ICAR) के संस्थानों आदि से संबंध कर निरंतर तकनीकी सहायता मार्गदर्शन और क्षमता निर्माण प्रदान करने की सुविधा दी जा सकती है। एफपीओ के सदस्यों के लिए प्रशिक्षण हेतु प्रत्येक राज्य में दो-तीन एजेंसियों संस्थाओं की पहचान की जा सकती है
• एफपीओ से अधिमान्य खरिद- एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) को उपज के विपणन में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए किसी वस्तुओं की सरकार द्वारा खरीद में एफपीओ को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इससे एफपीओ को अपनी कृषि उपज को उचित मूल्य पर बेचने का एक विकल्प मिलेगा।
• कटाई के बाद(Post – harvest) उपयोग होने वाली सामान्य बुनियादी सुविधाओं का विकास – एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) द्वारा जिला स्तर पर वेयरहाउसिंग, कोल्ड स्टोरेज, सॉर्टिंग और ग्रेडिंग, पैकेजिंग जैसी सामान्य बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जाना चाहिए। इससे ग्रामीण क्षेत्र में सूचना उद्यमिता के लिए अवसर भी पैदा होंगे।
निष्कर्ष-• कृषक उत्पादक संगठनों (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) के माध्यम से किसान अधिक प्रतिस्पर्धी मूल्य पर आगत खरीद सकते हैं। इसके साथ ही किसी उत्पादों के विपणन की बेहतर सौदेबाजी की शक्ति भी इन्हें प्राप्त हो पाती है। देश के अधिकांश एफपीओ अभी भी अपने उस्मायन चरण (Incubation Phase) में हैं, इसलिए उन्हें आगे बढ़ने के लिए वित्त सहित विभिन्न प्रकार की सहायता की आवश्यकता है।
• सरकार द्वारा एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) को विभिन्न प्रकार के नीतिगत प्रोत्साहन प्रदान किया जा रहे हैं, उदाहरण के लिए, सरकार द्वारा ई- नाम (eNam)जैसी पहल ने कृषि – बाजारों को अधिक पारदर्शी बनाया है, लेकिन सरकार द्वारा प्रारंभ की गई इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिए विभिन्न मानदंडों को पूरा करना आवश्यक है।
• एफपीओ (FARMER PRODUCRES ORGANIZATION) के विकास पथ में बाजार की बाधाओं को कम करने के प्रयास किए जाने चाहिए। संस्थागत ऋणदाताओं को एफपीओ को ऋण देने के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
• साथ ही सरकार द्वारा इस प्रकार के प्रावधान किए जाने चाहिए जिससे एफपीओ को आत्मनिर्भर व्यावसायिक इकाई में बदला जा सके।
Read More- Blue Economy, Uttarakhand Tunnel Collapse